गिग अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

हाल ही में प्रकाशित फोरम फॉर प्रोग्रेसिव गिग वर्कर्स के द्वारा आयोजित एक वेबिनार में भारत की गिग अर्थव्यवस्था पर श्वेतपत्र प्रकाशित किया गया है। इसमें जहां भारत में तेजी से बढ़ती हुई गिग अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ती हुई नौकरियों और चुनौतियों का उल्लेख किया गया है, वहीं कहा गया है कि भारत में गिग अर्थव्यवस्था इस वर्ष 2024 तक 17 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढकर 455 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है। श्वेत पत्र के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिग अर्थव्यवस्था का योगदान वर्ष 2030 तक 1.25 प्रतिशत के स्तर पर होगा। गौरतलब है कि देश में सरकारी क्षेत्र की नौकरियों में कमी आ रही है, लेकिन गिग अर्थव्यवस्था में रोजगार के मौके छलांगे लगाकर बढ़ रहे हैं। गिग अर्थव्यवस्था का मतलब है अनुबंध आधारित या अस्थायी रोजगार (गिग वर्क) वाली अर्थव्यवस्था । गिग अर्थव्यवस्था के तहत गिग वर्कर प्रोजेक्ट दर प्रोजेक्ट आधार पर काम करते हैं और अपनी सेवाएं देते हैं। व्यापक तौर पर कोविड- 19 के बाद डिजिटलीकरण के प्रसार ने गिग अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। जहां शहरी क्षेत्रों में गिग वर्कर को अभी तक कंस्ट्रक्शन, मैन्यूफैक्चरिंग, डिलिवरीज जैसे श्रम आधारित और कम योग्यता आधारित कार्यों से जोडक़र देखा जाता रहा है, वहीं अब गिग वर्किंग के मौके व्हाइट कॉलर जॉब यानी ऐसे कामों में भी बढ़ रहे हैं, जहां उच्च स्तर के कौशल और शिक्षा की जरूरत होती है । उच्च स्तर के कौशल और शैक्षणिक योग्यता के साथ काम के ऐसे मौके ई-कॉमर्स, फिनटेक, हेल्थटेक, लॉजिस्टिक्स, आतिथ्य, बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे हैं। खास बात यह है कि गिग अर्थव्यवस्था के तहत अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। महिलाओं की भागीदारी गिग अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में दिख रही है। चाहे मार्केटिंग हो या फाइनेंस, महिलाएं किसी से पीछे नहीं हैं। इसके साथ ही महिलाएं इस समय फ्रीलांसिंग में भी सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही हैं। उल्लेखनीय है कि गिग अर्थव्यवस्था में रोजगार के मौके बढ़ने के संबंध में नीति आयोग के आंकड़े भी महत्वपूर्ण हैं । नीति आयोग के मुताबिक देश में इस समय 77 लाख गिग कर्मी हैं। ऐसे कर्मियों की संख्या तेजी से बढने की उम्मीद जताई जा रही है। इसका कारण यह है कि गिग कर्मियों की व्यवस्था फिलहाल केवल शहरी क्षेत्र में ही है और मुख्य रूप से ये सेवा क्षेत्र में सक्रिय हैं। मगर अब इनका दायरा बढ़ेगा तो गिग कर्मियों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी। नीति आयोग के आकलन के अनुसार भारत में गिग वर्कर्स की संख्या 2030 तक बढक़र 2.3 करोड़ के लगभग हो जाएगी । देश में टियर-2 और टियर – 3 शहरों में गिग अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। खासतौर से मुंबई, दिल्ली, पुणे, बेंगलूरु, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर और चेन्नई सहित देश के छोटे-बड़े शहरों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गिग नौकरियां निर्मित होते हुए दिखाई दे रही हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन दिनों देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और रोजगार से संबंधित विषयों पर प्रकाशित हो रही विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि देश में गिग अर्थव्यवस्था के कारण विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में तेजी से कमी आ रही है और रोजगार के नए मौके बढ़ रहे हैं। चूंकि गिग कर्मचारी अक्सर संगठित और असंगठित श्रम के बीच ग्रे जोन में आते हैं, जिससे लाभ और संसाधन प्रभावित होते हैं, इसलिए बड़ी प्लेटफॉर्म कंपनियां तेजी से गिग श्रमिकों के लिए बेहतर कामकाजी परिस्थितियों को प्राथमिकता दे रही हैं। इसके तहत मानसून के दौरान टिकाऊ रेनकोट प्रदान करने से लेकर आराम करने के क्षेत्र की स्थापना और गर्मी के मौसम के दौरान पानी की सुविधा शामिल हैं। खास तौर से अमेजन, फ्लिपकार्ट, जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों के कल्याण के परिप्रेक्ष्य में सक्रिय रूप से व्यवस्थाएं सुनिश्चित करते हुए दिखाई दे रही हैं । फिर भी अभी देश में गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा पर पूर्ण रूप से ध्यान दिया जाना होगा । खास तौर से हमें गिग वर्कर्स के लिए भविष्य निधि और पेंशन और बीमा संबंधी कवरेज और लाभों के बारे में सोचना होगा । इस परिप्रेक्ष्य में नीति आयोग ने ‘इंडियाज बूमिंग गिग एंड ‘प्लेटफॉर्म इकोनॉमी’ शीर्षक से जो रिपोर्ट लॉन्च की है, उसके तहत अन्य बातों के साथ ही गिग वर्कर्स और उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की गई, जिसमें बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं शामिल हैं। यद्यपि देश में गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 अधिनियमित हो चुकी है, लेकिन अभी तक प्रभावी नहीं है। यह संहिता सरकार को जीवन और विकलांगता कवर, दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा और क्रेच लाभ प्रदान करने के लिए गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं तैयार करने में सक्षम बनाती है। अब देश में गिग वर्कर्स के लिए ऐसी योजनाएं और नीतियां बीमा कंपनियों के साथ साझेदारी में आगे बढ़ाना होगी, जिसमें एक फर्म या सरकार के सहयोग द्वारा विशिष्ट रूप से ऐसी डिजाइन हो, जैसी कि सामाजिक सुरक्षा संहिता – 2020 के तहत परिकल्पित है। दुनिया के कई देशों में गिग वर्कर्स को ‘वर्कर्स’ के रूप में वर्गीकृत करके जो मॉडल स्थापित किया गया है, उस पर ध्यान दिया जाना होगा। यह वर्गीकरण गिग वर्करों के लिए न्यूनतम वेतन, सवेतन अवकाश, सेवानिवृत्ति लाभ योजना और स्वास्थ्य बीमा सुरक्षित करता है। गिग वर्करों को राजकोषीय प्रोत्साहन जैसे टैक्स-ब्रेक या स्टार्टअप अनुदान प्रदान किए जा सकते हैं। गिग प्लेटफॉर्म क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने के लिए विशेष रूप से प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए डिजाइन किए गए उत्पादों के माध्यम से क्षेत्रीय और ग्रामीण व्यंजन, स्ट्रीट फूड, स्व-रोजगार व्यक्तियों को कस्बों और शहरों के व्यापक बाजारों में अपनी उपज बेचने के लिए प्लेटफाम्स से जोड़ा जा सकता है। देश में गिग वर्कर्स को केवल कुछ ही फर्म ऑन- वर्क दुर्घटना बीमा प्रदान करती हैं। इसे सभी नियोक्ताओं द्वारा प्रदान किया जा सकता है। कामगारों को संकटपूर्ण समय या सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने में मदद करना भी कंपनियों द्वारा गंभीरता से लिया जाना होगा ।

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