
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर उस जनहित याचिका का विरोध किया है, जिसमें दोषी ठहराए गए राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। सरकार ने कहा कि अयोग्यता की अवधि विधायी नीति के दायरे में आती है। यह दावा 2016 में वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में प्रस्तुत एक हलफनामे में किया गया था, जिसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी । हलफनामे में कहा गया है कि यह सवाल कि आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त होगा या नहीं, यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसमें कहा गया है कि दंड के क्रियान्वयन को एक उपयुक्त समय तक सीमित कर, रोकथाम सुनिश्चित की गई है और अनावश्यक कठोर कार्रवाई से बचा गया है। केंद्र ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि दंड या तो समय या मात्रा के अनुसार निर्धारित होते हैं। हलफनामे में कहा गया है कि यह दलील दी गई है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों के व्यापक प्रभाव हैं और वे स्पष्ट रूप से संसद की विधायी नीति के अंतर्गत आते हैं तथा इस संबंध में न्यायिक समीक्षा की रूपरेखा में उपयुक्त परिवर्तन करना पड़ेगा। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के अलावा देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण का अनुरोध किया है। अपने हलफनामे में, केंद्र ने रेखांकित किया कि शीर्ष अदालत ने निरंतर यह कहा है कि एक विकल्प या दूसरे पर विधायी विकल्प की प्रभावकारिता को लेकर अदालतों में सवाल नहीं उठाया जा सकता । जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) के तहत, अयोग्यता की अवधि दोषसिद्धि की तारीख से छह साल या कारावास के मामले में रिहाई की तारीख से छह साल तक है।
