कृत्रिम बुद्धि की निगरानी में महाकुंभ मेला

समय साथ देष में लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े मेले कुंभ में भी परिवर्तन देखने में आते रहे हैं। इसी बदलाव के चलते इस बार प्रयागराज में अस्थाई रूप से निर्मित की गई ‘कुंभनगरी’ में 13 जनवरी 2025 से षुरू होकर 31 मार्च तक चलने वाले इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं की निगरानी कृत्रिम बुद्धि से संचालित उपकरण करेंगे। इस हेतु कुंभनगरी का पूर्णतः डिजिटलीकरण कर दिया गया है। प्रत्येक 12 साल में प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृष्य सरस्वती नदियों के संगम पर महाकुंभ आयोजित होता है। 45 दिन चलने वाले इस कुंभ में 45 करोड़ तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद है। 2013 में 20 करोड़ से ज्यादा यात्री प्रयाग पहुंचे थे। इस बार दोगुने से ज्यादा लोगों के पहुंचने का अनुमान इसलिए है, क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर बनने के साथ वाराणसी में काषी विष्वनाथ मंदिर का भी कायाकल्प हुआ है। साथ ही आवागमन के साधन बढ़े हैं। अतएव 4 तहसील और 67 ग्रामों की 6000 हेक्टेयर भूमि पर मेले में यात्रियों के लिए समुचित प्रबंध योगी आदित्यनाथ सरकार ने किए हैं। लोगों को आवाजाही में असुविधा न हो ? इसलिए मेला प्राधिकरण और गूगल के बीच हुए समझौते के अंतर्गत आवागमन मानचित्र (नेविगेशन मैप) की सुविधा मोबाइल व अन्य संचार उपकरणों पर दी गई है। इस सुविधा से यात्री गंतव्य की स्थिति और दिशा हासिल कर सकते हैं। इस मानचित्र में मेले की धार्मिक महिमा से जुड़े नदी घाट, मंदिर, अखाड़े, संतो के डेरे, ठहरने के स्थल, होटल और खान-पान संबंधी भोजनालयों की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध होगी। 29 जनवरी को पड़ने वाली मौनी अमावस्या को सबसे बड़ा पर्व स्नान माना है। अतएव इस दिन छह से दस करोड़ लोग गंगा में स्नान करने का अनुमान है। बांकी पांच पर्वों में 2 से 8 करोड़ लोग संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने आ सकते हैं। वैसे तो सुरक्षा के लिए 37000 पुलिस और विभिन्न बलों के जवान तैनात रहेंगे, लेकिन इतने लोगों पर इन जवानों द्वारा निगाह रखना आसान नहीं है, इसलिए समूची कुंभनगरी में कृत्रिम बुद्धि आधारित कैमरे लगा दिए गए हैं। चप्पे-चप्पे पर लगे इन 2400 कैमरों की आंख में एआई लैंस लगे हैं। अतएव ये चेहरे पहचानकर अपराधियों पर नजर रखेंगे। इस नगरी में जगह-जगह डिजिटल और बहुभाषी टच स्क्रीन बोर्ड लगाए गए हैं। जिन पर किसी भी प्रकार की घटना की तत्काल शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी। ये सुविधाएं मेले में दिन-रात उपलब्ध रहेंगी। महाकुंभ के इस पर्व पर ढाई हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। कुंभ मेले का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने इसे प्रारंभ किया था। लेकिन प्राचीन भारत की पौराणिक कथाओं के आधार पर कुंभ का आरंभ समुद्र-मंथन के समय से माना जाता है। समुद्र-मंथन की कथा दुर्वासा ऋशि के अभिषाप से जुड़ी है । इंद्र ने जब दुर्वासा का अभिवादन नहीं स्वीकारा तो उन्होंने इंद्र का वैभव नश्ट होने का श्राप दे दिया। श्राप फलीभूत हुआ । इससे मुक्ति के लिए भगवान विश्णु की सलाह पर देव और देवताओं मिलकर क्षीर सागर में मंथन किया। समुद्र-मंथन के अंत में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के आविश्कारक वैद्य धन्वन्तरि एक हाथ में अमृत घट और दूसरे में आयुर्वेद ग्रंथ लेकर प्रकट हुए। अर्थात उनके कर-कमलों में मनुश्य के षारीरिक उपचार के प्रतीक रूप में जहां अमृत से भरा घड़ा था, वहीं किस रोग का उपचार कैसे किया जाए, उसकी पद्धति का पूरा षास्त्र भी था। अमृत देखते ही दानवों ने धैर्य खो दिया। वे विचलित हो गए। उसे हथियाने के लिए छीना-झपटी षुरू हो गई। इसी दौरान इंद्र अपने पुत्र जयंत को अमृत- कुंभ लेकर भागने का संकेत दिया । फलस्वरूप जयंत कलष छीन कर भाग खड़ा हुआ । दानव कलष छीनने के लिए जयंत के पीछे दौड़ । इस कुंभ को हड़पने के लिए देव एवं दानवों के बीच यह संघर्श 12 वर्शों तक चला। इस संघर्श के दौरान अमृत कलष की बूंदें, जिन 12 स्थलों पर छलकीं, उसमें आठ स्थान स्वर्ग में हैं और हरिद्वार, प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन पृथ्वी पर हैं। संघर्श में सहयोग और कलष की सुरक्षा की दृश्टि से जयंत की सहायता सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ने की। इनके भी रक्षा के दायित्व निष्चित थे। सूर्य अमृत- कुंभ को फूटने से, चंद्रमा धरती पर गिरने से और बृहस्पति ने दानवों के हाथों में जाने से बचाया। इसीलिए दुनिया के सबसे बड़े मेले ‘कुंभ’ का आयोजन बृहस्पति, सूर्य व चंद्र के आकाषीय योग के अनुसार होता है। कलश प्राप्ति के संघर्श को विराम नहीं लगते देख देवता असमंजस की मनस्थिति में आकर खिन्न हो गए, तब विष्णु ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए आश्वस्त किया, ‘देवगण निश्चिंत रहें। मैं इस कलश को प्राप्त कर आपकी कामना को पूरा करने का उपाय करता हूं।’ मुख से उद्घृत हुए इन शब्दों के साथ ही, विष्णु ने अत्यंत, सुंदर सुगठित देहयष्टि और चंचला प्रवृत्ति की मोहिनी स्त्री का रूप धारण कर लिया। संघर्श स्थल पर जब अप्सरा सी रूपवान स्त्री को देव व दानवों ने देखा तो एकाएक ठिठक गए। राक्षसों की मति व लालसा उस स्त्री की कांतिमयी देह की ओर आकर्शित होने लगी। देव व दानव जब एकटक निहारते हुए जड़वत हो गए तो स्त्री अवतारी विश्णु बोले, ‘आप लोग किस कारण से झगड़ रहे हैं ? इस प्रष्न के उत्तर में राक्षसों ने अमृत-कलष को लेकर छिड़े संघर्श का पूरा वृत्तांत सुना दिया। राक्षसों की कही बातें सुनकर वह स्त्री हंसी । जैसे उनकी मूढ़ता का उपहास कर रही हो। और फिर कुशलतापूर्वक राक्षसों पर वक्रदृष्टी डालते हुए बोली, ‘हे दानवों ! तुम व्यर्थ ही अपना समय, शक्ति और ऊर्जा नष्ट कर रहे हो ? यदि चाहो तो मैं स्वयं ही यह अमृत एक समान भागों में बांटकर पिला सकती हूं। यदि सहमत हो तो बताओ ?’ अंततः किंकत्र्तव्यविमूढ़ असुरों ने विष्व – मोहिनी के रूपजाल से सम्मोहित होते हुए अमृतपान कराने की सहमति जता दी। राक्षसों की प्रगट मंषा से अवगत होने के बाद मोहिनी ने देव और दानवों से निवेदन करके उन्हें अमृतपान के लिए अलग-अलग पंक्तियों में बिठा दिया । षंतिपूर्वक बैठने के उपरांत मोहिनी रूपी मायावी विश्णु देवताओं को अमृतपान कराते रहे, किंतु असुरों को साधारण जल पिलाते रहे। मायावी मोहिनी के रूपजाल से विस्मित सम्मोहित व विवेक खोए असुर, विष्णु की भेद से भरी इस लीला को नहीं समझ पाए । लेकिन कुछ विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तियों में प्रच्छन्न माया को भी ताड़ने की कुदरती अंतदृश्टि होती है ।

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