
प्रयागराज (हिंस) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगभग तीन वर्षों से जेल में बंद एक कर्मचारी को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि जेल में बंद रहने से काम नहीं करने के कारण कर्मचारी उस अवधि का पिछला वेतन पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू होता है। याची शिवाकर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (1) (बी) के साथ धारा 13 (1) के तहत उपभोक्ताओं से बिजली कनेक्शन के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके बाद याची 23 जनवरी 2015 से 18 दिसंबर 2018 तक जेल में बंद रहा। जब याची ने उक्त अवधि के लिए वेतन के भुगतान के लिए विद्युत प्राधिकरण से संपर्क किया, तो कोई काम नहीं तो कोई वेतन नहीं सिद्धांत के आधार पर उसका अनुरोध खारिज कर दिया गया। इसके बाद याची ने कारावास की अवधि के लिए मजदूरी के भुगतान की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने कहा कि केवल दुर्लभ मामलों में ही, जैसे कि नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न करने पर, काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत को छोड़ा जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि रणछोड़जी चतुरजी ठाकोर बनाम अधीक्षक अभियंता, गुजरात विद्युत बोर्ड, हिम्मतनगर (गुजरात) और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जब कोई कर्मचारी किसी कथित अपराध के लिए जेल में बंद होता है और बाद में बरी हो जाता है, तो नियोक्ता पर कारावास की अवधि के लिए वेतन का भुगतान करने का बोझ नहीं डाला जा सकता है। खासकर जब काम से ऐसी अनुपस्थिति किसी अनुशासनात्मक जांच के कारण न हो, जिसे बाद में अवैध पाया गया हो ।
