भारत के धुरंधर अर्थशास्त्री, प्रशासक, कद्दावर नेता, दो बार प्रधानमंत्री रह चुके डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से आर्थिक सुधार का महासूर्य अस्त हो गया, भारतीय राजनीति में एक संभावनाओं भरा राजनीति सफर ठहर गया, जो राष्ट्र के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। वे निश्चित ही आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण के नींव के पत्थर थे, मील के पत्थर थे। वे आर्थिक सुधार की बुलंद आवाज थे। उन्हें आर्थिक सुधार, भारत में वैश्विक बाजार व्यवस्था एवं उदारीकरण का जनक कहा जा सकता है। जिन्होंने न केवल देश-विदेश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाकर, अमिट यादों को जन-जन के हृदय में स्थापित कर हमसे जुदा हो गये हैं। डॉ. सिंह यह नाम भारतीय इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ है, जिससे एक सशक्त राष्ट्रनायक, स्वप्नदर्शी राजनायक, आदर्शचिन्तक, भारत में नये अर्थ के निर्माता, कुशल प्रशासक, दार्शनिक के साथ-साथ भारत को आर्थिक महाशक्ति का एक खास रंग देनेकी महक उठती है । उनके व्यक्तित्व के इतने रूप हैं, इतने आयाम हैं, इतने रंग है, इतने दृष्टिकोण हैं, जिनमें वे व्यक्ति और नायक हैं, दार्शनिक और चिंतक हैं, प्रबुद्ध और प्रधान है, शासक एवं लोकतंत्र उन्नायक हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डॉ. सिंह के निधन पर कहा है कि जीवन के हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करना आसान बात नहीं है। एक नेक इंसान के रूप में, एक विद्वान अर्थशास्त्री के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।’ दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, केंद्रीय वित्त मंत्री व प्रधानमंत्री- पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे, अनूठे रहे। घालमेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग । विचारों में निडर । टूटते मूल्यों में अडिग । घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित वे भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सिर्फ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर न केवल सरकार चलाई बल्कि एक नयी सोच की राजनीति को पनपाया, पारदर्शी एवं सुशासन को सुदृढ़ किया । विलक्षण प्रतिभा, राजनीतिक कौशल, कुशल नेतृत्व क्षमता, बेवाक सोच, निर्णय क्षमता, दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता के कारण कांग्रेस के सभी नेता उनका लोहा मानते रहे, उनके लिये वे मार्गदर्शक ही नहीं, प्रेरणास्रोत भी है। वे बेहद नम्र इंसान थे और वह अहंकार से कोसों दूर थे। उनके प्रभावी एवं बेवाक व्यक्तित्व से भारतीय राजनीति एवं लोकतांत्रिक संस्थान चमकते रहे हैं। डॉ. सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोलने के लिए उदारीकरण सुधार लागू किए। साथ ही, उन्होंने लाइसेंस राज समाप्त कर, निजीकरण और राज्य नियंत्रण में कमी की। डॉ. सिंह द्वारा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के साथ नियत को प्रोत्साहित किया गया। डॉ. सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब में 26 सितम्बर 1932 को हुआ था। उनकी जन्मतिथि भी 26 एवं निधन तिथि भी 26 एक संयोग ही कहा जायेगा । उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। डॉ. सिंह की पत्नी का नाम गुरशरण कौर है, जो कि एक गृहिणी और गायिका भी हैं। उनके तीन बेटियां हैं। पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पीएच. डी. की । तत्पश्चात उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. भी किया। डॉ सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच ये संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डॉ॰ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। डॉ. सिंह ने भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में लगातार दो कार्यकाल पूरे किए हैं। पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया। वहीं सूचना का अधिकार अधिनियम भी उनके कार्यकाल में आया। इसके अतिरिक्त उन्हें ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता पर हस्ताक्षर के लिए भी जाना जाता है। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया । हालांकि, इस दौरान उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले जैसे विवादों का भी सामना करना पड़ा। यह बात हम सभी जानते हैं कि उन्हें मौन पीएम भी कहा जाता था, हालांकि उन्होंने इस पर चुप्पी तोड़ते हुए सार्वजनिक रूप से इसका सटीक जवाब भी दिया था। विकास के प्रति डॉ. सिंह की प्रतिबद्धता और उनकी अनेक उपलब्धियों को उन अनेक सम्मानों के माध्यम से मान्यता मिली है जो उन्हें प्रदान किए गए हैं। इनमें 1987 में पद्म विभूषण, 1993 में वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी पुरस्कार, 1993 और 1994 में वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी पुरस्कार और 1995 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार शामिल हैं।