इजराइल को लेकर फिलिस्तीन, लेबनान और बेरूत में विवाद चलता रहता है। एशिया में यहूदियों की भूमि पर जब ईसाई मजहब और इस्लाम मजहब ने आकार ग्रहण करना शुरू किया तो हालात ऐसे बने कि यहूदियों को अपने देश से भागना पड़ा। जिसको जहां भी आश्रय मिला, वह उसी देश में जाकर बस गया। बहुत से यहूदी हिंदुस्तान में आकर भी बस गए। लेकिन देखते-देखते पूरा यूरोप अपने पूर्वजों के रास्ते को छोड़ कर ईसाई मजहब के नए रास्ते पर चल पड़ा। बाद में एशिया में उसी क्षेत्र में जहां ईसाई मत पैदा हुआ था, इस्लाम पंथ का उदय हुआ। इस नए मत में दीक्षित हुए अरबों और तुर्की ने एशिया/ जम्बू द्वीप के देशों को तो पकड़ा ही, लेकिन इसके साथ ही उसने अफ्रीका और यूरोप के देशों में भी ईसाई मजहब को अपदस्थ करने के लिए युद्ध छेड़ दिया । इन संघर्षो का सबसे ज्यादा नुकसान यहूदियों को ही भुगतना पड़ा । उनका देश खत्म हो गया, लेकिन इसके साथ ही यहूदियों को यूरोप में भी ईसाइयों के प्रहारों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन विश्व युद्धों ने एक बार फिर दुनिया का राजनीतिक नक्शा बदल दिया। नए नक्शे में यहूदियों को एक बार फिर से उनका परम्परागत देश वापस मिल गया। दुनिया के नक्शे पर फिर से इजरायल दिखाई देने लगा। दुनिया भर में बिखरे यहूदी अलग- अलग देशों से आकर इजरायल में बसने लगे । जाहिर है अब यहूदियों के लिए पवित्र इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा उन फिलिस्तीनी, लेबनानी या दूसरे लोगों को छोड़ना पड़ा जो इस लम्बे कालखंड में यहां बस गए थे। इतना ही नहीं, इस कालखंड में यहां बस गए लोगों ने इस्लाम या ईसाईयत नाम के अलग मजहबों को भी अपना लिया था। वैसे तो यहूदी, ईसाई और मुसलमान तीनों ही ‘पीपल्स ऑफ दि बुक’ माने जाते हैं, लेकिन काल के अंतराल ने अब इनको एक-दूसरे का शत्रु ही बना दिया था। वैसे भी इजराइल चारों ओर से अपने विरोधी मजहबों को मानने वाले देशों से ही घिरा हुआ है। इन देशों को यह भी लगता है कि इजराइल उनको अपदस्थ करके स्थापित हुआ है। अपने निर्माण काल से ही इजराइल को निरंतर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। लेकिन प्रश्न है कि इस सारे खेल में ईरान क्या कर रहा है? ईरान इजराइल से शत्रुता धर्म किस आधार पर निभा रहा है ? क्योंकि सभी जानते हैं कि लेबनान और