प्रह्लाद सबनानी ट्रम्प प्रशासन ने अपने पहिले कार्यकाल में अमेरिका के रिश्तों को भारत के साथ मजबूत करने का प्रयास किया था । परंतु, नवम्बर 2024 में सम्पन्न हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान श्री ट्रम्प लगातार यह आभास देते रहे हैं कि वे अमेरिका को एक बार पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने का प्रयास करेंगे और इसके लिए अन्य देशों विशेष रूप से चीन से आने वाले सस्ते उत्पादों पर 60 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगा सकते हैं दिनांक 20 जनवरी 2025 को अमेरिका में श्री डॉनल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति के रूप में दूसरी चार कार्यभार सम्हालने जा रहे हैं। ट्रम्प प्रशासन ने अपने पहिले कार्यकाल में अमेरिका के रिश्तों को भारत के साथ मजबूत करने का प्रयास किया था। परंतु, नवम्बर 2024 में सम्पन्न हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान श्री ट्रम्प लगातार यह आभास देते रहे हैं कि वे अमेरिका को एक बार पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने का प्रयास करेंगे और इसके लिए अन्य देशों विशेष रूप से चीन से आने वाले सस्ते उत्पादों पर 60 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगा सकते हैं, जिससे चीन से आयातित उत्पाद अमेरिका में महंगे हों जाएंगे एवं विनिर्माण इकाईयां अमेरिका में ही इन वस्तुओं का उत्पादन प्रारम्भ करेंगी। दूसरे, अमेरिका में आज भारी मात्रा में अन्य देशों से अप्रवासी नागरिक गैर कानूनी रूप से रह रहे हैं, विशेष रूप से अमेरिका के पड़ौसी देश मैक्सिको के नागरिक आसानी से सीमा पार कर अमेरिका में पहुंच जाते हैं, अतः गैर कानूनी रूप से अमेरिका में रह रहे नागरिकों को अमेरिका से बाहर भेजेंगे। उक्त दो विषयों को श्री ट्रम्प ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान जोर शोर से उठाया था। अमेरिका को एक बार पुनः महान बनाने की बात भी जोर शोर से कही गई थी। यदि ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में आयात कर को बढ़ा देता है तो इसका प्रभाव भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले उत्पादों पर भी पड़े बिना नहीं रह सकेगा। हालांकि अमेरिका में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि अमेरिका में श्रम की लागत बहुत अधिक है। अमेरिका में निर्मित उत्पादों की लागत तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक रहने वाली है, इसके कारण एवं अमेरिका में आयातित उत्पादों पर आयात शुल्क के बढ़ाने से अमेरिका में मुद्रा स्फीति की समस्या भी पुनः खड़ी हो सकती है। दूसरे, अमेरिका यदि आयात को प्रतिबंधित करता है तो अमेरिकी डॉलर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में और अधिक मजबूत होगी एवं अन्य देशों की मुद्राओं की बाजार कीमत गिरेगी जिससे इन देशों में उत्पादित वस्तुओं के निर्यात और अधिक आकर्षक होने लगेंगे। बल्कि इससे तो भारत से टेक्स्टायल, लेदर, विनिर्माण एवं कृषि क्षेत्र से उत्पादों के निर्यात अमेरिका को बढ़ेंगे। अमेरिका से निर्यात कम होने लगेंगे क्योंकि अन्य देशों को अमेरिका से आयातित वस्तुओं के एवज में महंगे डॉलर का भुगतान करना होगा। परंतु, ट्रम्प प्रशासन ने तो आगे आने वाले समय का आभास अभी से देना शुरू पर दिया है और मेक्सिको और कनाडा से आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत का आयात शुल्क एवं चीन से आयातित वस्तुओं पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। हालांकि अभी भारत से आयातित वस्तुओं पर किसी भी प्रकार का अतिरिक्त आयात शुल्क लगाने की घोषणा अभी नहीं की गई है। यदि ट्रम्प प्रशासन आगे आने वाले समय में चीन से आयातित उत्पादों पर इतना भारी भरकम आयात शुल्क लागू करता है तो इससे भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिका में जगह बन सकती है और विशेष रूप से ऑटो पार्ट्स, सौर ऊर्जा उपकरण एवं रासायनिक उत्पादन जैसे क्षेत्रों में भारतीय विनिर्माण इकाईयां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकती हैं। इसी प्रकार, यदि अमेरिकी प्रशासन द्वारा चीन से आयातित वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात शुल्क लगाया जाता है तो चीन के निर्यात कम होंगे और इससे चीन में आर्थिक वृद्धि दर कम होगी और ऊर्जा उत्पादों (कच्चे तेल, पेट्रोल, डीजल, गैस, आदि) की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम होगी, जिससे कच्चे तेल की कीमतें भी कम होंगी, इसका सीधा सीधा लाभ भारत को हो सकता है, क्योंकि भारत विश्व में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है। साथ ही, श्री ट्रम्प ने अमेरिका में भी कच्चे तेल के उत्पादन को आगे आने वाले समय में बढ़ाने की घोषणा की है और तुलनात्मक रूप से कुछ सस्ते दामों पर कच्चे तेल का निर्यात भारत को किया जा सकता है । विनिर्माण एवं सुरक्षा (डिफेन्स) के क्षेत्र में भी भारतीय कम्पनियों को लाभ हो सकता है। ट्रम्प प्रशासन ने ट्रम्प के प्रथम कार्यकाल में भारत के साथ कई बड़े रक्षा सौदे सम्पन्न किए थे। अमेरिकी सैन्य क्षमताओं को और अधिक मजबूत करने के लिए, अमेरिका भारत से सुरक्षा क्षेत्र के उत्पादों का आयात आगे आने वाले समय में बढ़ा सकता है। यदि ट्रम्प प्रसाशन आयात करों में अतुलनीय वृद्धि करता है तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति की समस्या एक बार पुनः खड़ी हो सकती है जिससे सम्भव है कि बढ़ी हुई मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए फेडरल रिजर्व एक बार पुनः फेड रेट (ब्याज दरों) में वृद्धि करे जिसका असर विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ेगा। अमेरिका का वित्तीय बजट घाटा भारी मात्रा में ऋणात्मक है एवं अमेरिका के ऊपर 36 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की ऋण देयताएं हैं । अतः अमेरिकी प्रशासन का सोचना है कि प्रतिवर्ष 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के खर्च को कम करने हेतु प्रयास करने होंगे। यदि यह वास्तव में होता है तो अमेरिका में सरकारी कर्मचारियों की बड़ी संख्या में कमी की जा सकती है। अमेरिकी सरकार के खर्चे यदि कम होते हैं तो इससे देश के आर्थिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। टैक्स कटौती एवं राजकोषीय उपायों के चलते अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है एवं इससे अमेरिकी बांड यील्ड बढ़ सकती हैं। भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में कमजोर होगा और भारत में आयात किए जाने वाले उत्पादो विशेष रूप से कच्चे तेल की लागत बढ़ जाएगी और इससे अंततः भारत में भी महंगाई बढ़ सकती है। ट्रम्प प्रशासन ने अपने पहिले कार्यकाल में भी भारत के खिलाफ कुछ आर्थिक कदम उठाए थे जैसे भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम आफ प्रेफ्रेन्सेज (जीएसपी) से हटा दिया था। लेकिन अंततोगत्वा भारत पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं हुआ था वर्ष 2018 में अमेरिका ने स्टील पर 25 प्रतिशत, अल्यूमिनियम पर 10 प्रतिशत, वशिंग मशीन पर 35 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क लगाया था परंतु वर्ष 2019 से वर्ष 2021 के बीच अमेरिका को भारत का स्टील निर्यात 44 प्रतिशत बढ़ गया था। इसी प्रकार, फूटवीयर, मिनरल्स, रसायन, इलेट्रिकल व मशीनरी जैसे उत्पादों का निर्यात भी भारत से अमेरिका को बढ़ा है, इससे सिद्ध होता है कि भारत कई उत्पादों के मामले में चीन के मुकाबले वैश्विक सप्लाई चैन में होने वाले बदलाव का अधिक लाभ उठाने की स्थिति में हैं।