होजाई (निसं) | हिंदी महज एक भाषा नहीं बल्कि हृदय का आवेग है। हिंदी हमारी रग-रग में शामिल है। हिंदी हमारा उल्लास है। हमारा हर दुख हर सुख हिंदी से ही परिलक्षित होता है। उक्त बातें रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रधान डॉ. मनोज कुमार स्वामी ने हिंदी दिवस के उपलक्ष पर अपना मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहीं। गांधी विद्यापीठ हाईस्कूल के सभागार में आयोजित सभा की अध्यक्षता समाजसेवी गजानंद अग्रवाल की। उक्त कार्यक्रम में अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे डॉ. मनोज कुमार स्वामी और होजाई बालिका महाविद्यालय के बंगला विभाग के प्रधान डॉ. पिजुष नंदी। इसके साथ ही मंच पर गांधी विद्यापीठ हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक आलोक कुमार गुप्ता, सेवानिवृत अध्यापक सर्वेश्वर पाठक, समाजसेवी शिवशंकर बोरा, हिंदी के शिक्षक दामोदर मिश्र, समाजसेवी व वरिष्ठ पत्रकार रमेश मुंदड़ा, समाजसेवी प्रवीण सरावगी । कार्यक्रम का संचालन गांधी विद्यापीठ हाई स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक राजीव कश्यप गुप्ता, मधु अगरवाला व अपना मंच के संस्थापक निखिल कुमार मुदड़ा ने की। वही मुदड़ा ने उद्देश्य की व्याख्या करते हुए हिंदी दिवस के उपलक्ष पर आयोजित कार्यक्रम पर प्रकाश डाला व अपना मंच की स्थापना कल से लेकर अब तक की कार्यक्रमों की जानकारी सभी को दी। कार्यक्रम का शुभप्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इसके बाद सभी अतिथियों व शिक्षकों का असमिया फूलंम गमछा व उपहार देकर सम्मान किया गया। समारोह में डॉ मनोज कुमार स्वामी ने हिंदी दिवस के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिंदी को यदि उसका मान और सम्मान लौटाना है तो हमें हिंदी को आत्मसात करना होगा। उन्होंने कहा कि जिस दिन इस देश में हिंदी को मिट्टी के साथ-साथ रोटी से भी जोड़ा जाएगा उस दिन हिंदी का अस्तित्व वापस लौट आएगा | हिंदी हिंदुस्थान का मान है इसलिए हमें हिंदी बोलने में शर्म नहीं बल्कि गर्व महसूस होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हमें हिंदी का प्रचार प्रसार करना है तो हमें हमारी क्षेत्रीय भाषाओं को भी हिंदी के समान अपनाना होगा क्योंकि हमारी क्षेत्रीय भाषा हिंदी से ही निकली हुई भाषाएं हैं। उन्होंने आगे इस दिवस की विस्तृत जानकारी सभो से साझा की। इस दौरान डॉ. पिजुष नंदी ने व्यावहारिक जीवन में हिंदी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती है जब न तो अंग्रेजी से काम चलता है और न ही आंचलिक भाषा से। ऐसे विकट समय में हिंदी सम्पर्क भाषा के रूप अपनी मुक्कमल भूमिका का निर्वाह कर विचारों के आदान प्रदान में सहायक सिद्ध होकर स्वयं अपने महत्व को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि हिंदी का प्रचार प्रसार सिर्फ हिंदी स्कूल तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए इसे गैर हिंदी जगहों पर भी इसका प्रचार प्रसार होना चाहिए, तब कहीं जाकर हिंदी दिवस सार्थक होगा । गजानंद अग्रवाल ने भी हिंदी के महत्व पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा हिंदी दिवस का आयोजन करना अपने आप में प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा हिंदी हिंदुस्थान की मातृभाषा ही नहीं यह राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है। पर यह विडंबना है कि हिंदी के विकास के लिए आज हमें हिंदी दिवस का उद्यापन करना पड़ रहा है। हम तन से तो भारतीय हैं पर हमारी आत्मा अंग्रेजी है। जिस दिन हम अपनी आत्मा से अंग्रेजी को निकाल कर उसमें हिंदी को बसा लेंगे तो हमें हिंदी दिवस आयोजित करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। आलोक कुमार गुप्ता ने हिंदी दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला व विद्यालय में इस आयोजन हेतु अपना मंच की प्रशंसा की । वही प्रश्न उत्तरी कार्यक्रम का संचालन शिक्षक राजीव कश्यप गुप्ता व रमेश मुदड़ा ने बखूबी से किया ।