नई दिल्ली। ताइवान की सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कंपनियां बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत को वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में देख रही हैं, लेकिन इस संभावित साझेदारी को साकार करने की राह में कई चुनौतियां हैं। ताइवान आसियान अध्ययन केंद्र की निदेशक क्रिस्टी त्सुन-त्जू हसू ने कहा कि किसी देश या स्थान में निवेश करने का फैसला लेते समय ताइवान की कंपनी पांच प्रमुख बातों को ध्यान में रखती है। इनमें स्थानीय ग्राहक सहायता, बुनियादी ढांचे की पूर्णता, आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती, स्थानीय सरकार का नीतिगत समर्थन और पर्याप्त प्रतिभा की उपलब्धता शामिल हैं। हाल में मुंबई में आयोजित अश्वमेध इलारा इंडिया डायलॉग 2024 में हसू ने कहा कि टीएसएमसी के साथ केवल एक टाटा की साझेदारी कभी भी काफी नहीं रहेगी। भारत को प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं और कारोबारी साझेदारों की व्यापक श्रृंखला के साथ संबंध बनाने की आवश्यकता है। देश में शैशव अवस्था वाले सेमीकंडक्टर उद्योग को विदेश में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद प्रतिभाओं को वापस देश में आकर्षित करना भी चुनौतीपूर्ण लगता है। ताइवान में प्रशिक्षण हासिल करने वाले भारतीयों के बारे में हसू ने कहा कि ताइवान में प्रशिक्षण लेने के बाद उनमें से बहुत से लोग काम पर वापस आने के इच्छुक नहीं होते हैं।