नई दिल्ली ( हिंस)। सुप्रीम कोर्ट ने इजराइल को भारत से हथियारों की सप्लाई रुकवाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि विदेश नीति पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का मसला है। इसमें कोर्ट के दखल देने का कोई औचित्य नहीं बनता है। वकील प्रशांत भूषण के जरिए दाखिल याचिका में आरोप लगाया है कि इजराइल फिलिस्तीन में नरसंहार कर रहा है, इसलिए भारत सरकार कंपनियों से इजराइल को सैन्य समान देने से रोके। याचिका दायर करने वालों में सेवानिवृत्त राजनयिक अशोक कुमार शर्मा, पूर्व आईएएस मीना गुप्ता, पूर्व आईएफएस देब मुखर्जी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सोशल साइंस के पूर्व डीन प्रोफेसर अचिन विनायक, मशहूर प्रोफेसर ज्यां द्रेज, मशहूर कर्नाटक शास्त्रीय संगीतकार थोडूर मडास कृष्णा, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दर्ष मांदर और मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल दे थे। याचिका में नए लाइसेंस देने पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया था कि अंतर्राष्ट्रीय करार पर भारत ने हस्ताक्षर करते हुए कहा है कि नरसंहार रोकने के लिए अपनी शक्ति के भीतर सभी उपाय करने के लिए बाध्य है । इसलिए वह इजराइल को कोई सैन्य उपकरण या हथियार निर्यात नहीं कर सकता है । वो भी तब जब इस बात का गंभीर खतरा हो कि इन हथियारों का इस्तेमाल युद्ध अपराध करने के लिए किया जा सकता है। इस याचिका में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के 26 जनवरी के फैसले का हवाला दिया गया था, जिसके तहत उसने गाजा पट्टी में अपराध की रोकथाम और सजा पर कन्वेंशन के तहत दायित्वों के उल्लंघन के लिए इज़राइल के खिलाफ अनंतिम उपायों का आदेश दिया था। याचिकाकर्ताओं के मुताबिक सैन्य हथियारों की निरंतर आपूर्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ – साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया था कि भारत को इजराइल को दी जाने वाली अपनी सहायता, विशेष रूप से सैन्य उपकरणों सहित अपनी सैन्य सहायता को तत्काल निलंबित कर देना चाहिए, क्योंकि इस सहायता का उपयोग जेनोसाइड कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून या सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून के अन्य अनिवार्य मानदंडों के उल्लंघन करने के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि इजराइल को पहले से दिए गए हथियारों का इस्तेमाल नरसंहार करने, नरसंहार के कृत्यों में योगदान देने या ऐसे तरीके से उपयोग न किया जाए, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन हो ।