समलैंगिक विवाह भारत की संस्कृति नहीं : 22 पूर्व जज
नई दिल्ली । मंगलवार 17 अक्तूबर को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकों के बीच विवाह को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने विवाह को मूल अधिकार मानने से भी इनकार किया था। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के समर्थन में 22 पूर्व जज सामने आए हैं। इन पूर्व न्यायाधीशों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में बिल्कुल सही फैसला दिया है । समलैंगिकों के बीच विवाह को सामान्य विवाह की तरह अनुमति नहीं दी जा सकती । यह बयान जारी करने वालों में पूर्व जस्टिस प्रमोद कोहली के साथ इलाहाबाद, बंबई, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित हाई कोर्ट के 22 पूर्व न्यायाधीश शामिल हैं। गुरुवार को न्यायाधीशों द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय संवैधानिक प्रावधानों, संस्कृति और नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर दिया गया है। भारतीय संस्कृति और परंपरा को ध्यान में रखें तो यह बिल्कुल सही निर्णय है। यही कारण है कि समाज के बड़े तबके के द्वारा इसका स्वागत किया गया। समलैंगिक समूहों के द्वारा लगातार यह मांग की जा रही थी कि उन्हें भी सामान्य लोगों की तरह समाज में जीने का अधिकार मिलना चाहिए। साथ रहने का अधिकार उन्हें पहले ही मिल चुका है, लेकिन अब वे इससे आगे बढ़कर विवाह करने और बच्चा गोद लेने के अधिकार की मांग कर रहे थे । केंद्र सरकार ने उन्हें यह अधिकार देने के पक्ष में नहीं है । सर्वोच्च न्यायालय को दिए अपने हलफनामे में केंद्र ने समलैंगिक समूहों को पूरा सम्मान - सुरक्षा देने के साथ विवाह की अनुमति देने से इनकार किया था । उसका कहना था कि इससे भारतीय संस्कृति, परंपरा और विवाह संस्कृति को गहरा धक्का लगेगा।
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