राष्ट्र दिवस प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को सयुक्त मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ था। इस संगठन को संयुक्त राष्ट्र संघ या संक्षेप में यूएन भी कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के चार उद्देश्य हैं- अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का संरक्षण करना, विभिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करना, अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में सहयोग एवं मानव अधिकारों के प्रति सम्मान का संवर्धन और देशों की कार्रवाइयों के बीच तालमेल के केन्द्र के रूप में काम करना। लेकिन इधर दो वर्षों से जारी रूस और यूक्रेन युद्ध एवं इजरायल एवं अरब राष्ट्रों के बीच सीमित युद्धों ने संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता एवं उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। जहां तक संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न कार्यक्रमों के सफल संचालन में भारत के योगदान एवं भागीदारी का सवाल है तो आज भी भारत विकास एवं गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार और विश्व शांति स्थापना के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र संघ का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहा है। 140 करोड़ आबादी के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश और एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति भी है। भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से विश्व शांति को बढ़ावा देने वाले देश के रूप में रही है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था की नीति निर्धारक सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से भारत को वंचित तथा बाहर रखना अन्याय ही माना जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से ही रक्षा मिशनों में भारत महत्वपूर्ण योगदान देता आया है। अब तक विभिन्न शांति अभियानों में भारत के 180000 सैनिक हिस्सा ले चुके हैं। भारत ने 82 देशों लगभग 800 शांति स्थापना अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया है। मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र संघ शांति सैनिक दल में योगदान करने वाले सभी देशों में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। वर्तमान समय में भी भारत 11 यूएन मिशन और दो यूएन कार्यालयों को 6891 भारतीय सैन्य कर्मी और 782 पुलिसकर्मी उपलब्ध करवा रहा है। इससे विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने की भारत की गहरी प्रतिबद्धता साबित होती है और यह प्रदर्शित होता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर कितना विश्वास करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष उसके चार्टर के अनुसार कई ऐसे मुद्दे भी हैं जो लंबे समय से अपना हल निकलने की आस लगाए बैठे हैं। पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे मानवता से जुड़े मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र संघ अभी तक कोई कारगर हल तलाश नहीं पाया है। स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट 16 वर्षीया ग्रेटा थनबर्ग ने संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलते हुए कहा था कि, आपने हमारा बचपन, हमारे सपनों को छीन लिया है। लोग मर रहे हैं और पूरा ईकोसिस्टम बर्बाद हो रहा है। उनका कहना था कि विश्व के नेता कुछ नहीं कर रहे हैं। किसी जमाने में परमाणु निशस्त्रीकरण संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एजेंडे का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन बीते दो दशकों में यह मुद्दा जैसे पृष्ठभूमि में चला गया है। यद्यपि यूएन चार्टर का उद्देश्य विश्व समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक प्रगति हेतु कार्य करना है ताकि संसार में समानता, स्वतंत्रता, सहयोग, न्याय, भ्रातृत्व, मित्रता व सुरक्षा का परिवेश निर्मित किया जा सके और युद्ध की नौबत ही न आए। लेकिन बीते 75 वर्षों में न केवल युद्ध जारी हैं, अपितु सीरिया जैसे देश तो बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं । विश्व को आज भी ताकत एवं आर्थिक आधार पर ही हांका जा रहा है। पाकिस्तान आज भी आतंकवादियों की जन्मस्थली बना हुआ है और वैश्विक शांति एवं सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। उत्तर कोरिया और ईरान बेधडक होकर परमाणु हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रग्स का अवैध कारोबार बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है जिसमें प्रतिबंधित ड्रग्स का उत्पादन, खेती और बिक्री भी शामिल है। आतंकवाद की बढ़ती विभीषिका और खतरे के दृष्टिगत भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि का प्रस्ताव रखा था। लेकिन 26 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह मुद्दा आपसी सहमति न बन पाने के कारण अभी भी लटका हुआ है। और आतंकवाद की परिभाषा तय करने में नाकाम रहा है। जब वैश्विक संस्थाएं अपने एजेंडे एवं चार्टर के अनुरूप काम करती न दिखें तो उनके अस्तित्व पर सवालिया निशान उठना लाजिमी ही हो जाता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ के मौजूदा स्वरूप को बदलने और इसमें भारत की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित करने की मांग रखी थी। उनका सवाल था कि आखिर भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए कब तक इंतजार करता रहेगा ? नरेंद्र मोदी का कहना है कि सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल चरित्र में सुधार वक्त की मांग है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ संस्था के स्वरूप, संगठन और उसके कार्यों में सुधार का जो मामला उठाया है, यदि उस पर शीघ्र ही गौर न फरमाया गया तो आने वाले समय में संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था निश्चित तौर पर अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष करती नजर आएगी । यह संस्था अपनी पूर्णता एवं समग्रता में विश्व शांति और कल्याण के लिए अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाए, इसके लिए विश्व के सभी देशों को मिलजुल कर प्रयास और सहयोग करने की जरूरत है ।