शिक्षा सुधारों में क्रांति की दरकार

हिमाचल प्रदेश की सरकार शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए उत्तर प्रदेश के शिक्षा मॉडल को अपनाएगी। पहाड़ी प्रदेश के शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, जो कि उत्तर प्रदेश के दौरे पर थे, ने यूपी में शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे गुणात्मक सुधारों की बारीकियों को समझा। यह उनकी एक अच्छी पहल है क्योंकि शिक्षा में सुधारों को लेकर राजनीतिक विचारधारा का आड़े आना अपरिपक्वता की निशानी होती है और हमें हमेशा दूसरों के कामयाब प्रयासों से सीखना चाहिए। आइए, जानें कि देश के सबसे बड़े राज्य ने ऐसा क्या किया है जो कि शिक्षा सुधारों की दिशा में सुर्खियां बटोर रहा है। उत्तर प्रदेश ने शैक्षिक सुधारों में एक परिवर्तनकारी यात्रा शुरू की है, जिसमें एक ऐसा मॉडल स्थापित किया गया है जो सुलभता, आधुनिकीकरण, समावेशन और समग्र विकास को प्राथमिकता देता है। यह उभरती कहानी महत्वपूर्ण गुणात्मक और मात्रात्मक प्रगति को दर्शाती है, जिसमें प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने और बाजार की मांगों के साथ शैक्षिक पेशकशों को एकसार करने पर जोर दिया गया है। राज्य ने सभी स्तरों पर शिक्षा को बढ़ाने के लिए एक व्यापक ढांचा तैयार किया है, जो अपने युवाओं और बच्चों की विविध आकांक्षाओं को पूरा करता है। समावेशिता और सामाजिक पहुंच पर जोर ने यह सुनिश्चित किया है कि हाशिए पर पड़े समुदायों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच मिले। यह पहल न केवल शैक्षिक मानकों को फिर से परिभाषित करती है, बल्कि भविष्य के लिए एक दृष्टि को भी बढ़ावा देती है, जहां हर युवा व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने और समाज की प्रगति में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए सशक्त होता है। इस राज्य ने 130000 से अधिक सरकारी स्कूलों को आधुनिक बनाने के लिए ऑपरेशन कायाकल्प शुरू किया । कभी उपेक्षा के प्रतीक रहे इन स्कूलों को बुनियादी ढांचे और डिजिटल उपकरणों के साथ पुनर्जीवित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप 2018 और 2023 के बीच प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उपस्थिति में यह पुनरुत्थान स्कूलों के अवसर और आशा के स्थानों में परिवर्तन को दर्शाता है। भौतिक सुधारों के अलावा, शैक्षिक गुणवत्ता को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। मिशन प्रेरणा पढने और अंकगणित जैसे मुख्य शिक्षण मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे ग्रामीण साक्षरता दर में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा की गहरी बाधाओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब वास्तविक समय में निगरानी की जाने वाली मिड डे मील योजना में प्रतिदिन 1.8 करोड़ बच्चों को पौष्टिक भोजन दिया जाता है। इस सुधार ने उल्लेखनीय रूप से 9 प्रतिशत तक ड्रॉपआउट दरों को कम किया है जिससे कक्षाएं जुड़ाव के जीवंत केंद्र बन गई हैं । यदि सामाजिक बदलाव लाना है तो सर्वप्रथम समाज को शिक्षित करना पड़ेगा। भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी युवा शक्ति है जिसे एक बेहतर मानव संसाधन के रूप में तैयार करने के लिए बेहतर शिक्षा देनी पड़ेगी। वहां के विद्यालयों में में गेट, चारदीवारी, फर्श पर टाइल्स, खेलने के लिए पार्क और लाइब्रेरी के साथ डिजिटल क्लास रूम्स, बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, पीने के पानी और हाथ धोने के लिए हैंडवॉश सिस्टम, क्लास रूम में बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। बेसिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए वित्त वर्ष 2016-17 में 55176 हजार करोड़ से बढ़ाकर खर्चा वित्त वर्ष 2021-22 में 63455 तक पहुंचाया गया है। इसे प्रति वित्त वर्ष लगातार बढ़ाया ही जा रहा है, ताकि हमारे भविष्य के लिए नींव को मजबूत किया जा सके। उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या अधिक है। इसलिए वहां अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। चूंकि प्राथमिक शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है, इसलिए बच्चों के भविष्य निर्माण हेतु 1.84 करोड़ पाठ्य पुस्तकें, 1.83 करोड़ बस्ते, 1.61 करोड़ विद्यालय की पोशाकें मुफ्त में वितरित की गईं। इस व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाने के लिए डीबीटी के माध्यम से छात्र-छात्राओं को यूनीफार्म, स्वेटर, जूते-मोजे एवं स्कूल बैग खरीदने के लिए अभिभावकों के बैंक खातों में 1100 रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है । अनुसूचित जाति के बालकों, अनुसूचित जनजाति के बालकों एवं गरीबी रेखा के नीचे के परिवार के प्रत्येक छात्र- छात्रा को दो जोड़ी यूनीफार्म हेतु 600 रुपए, स्वेटर हेतु 200 रुपए, जूता-मोजा हेतु 125 रुपए, स्कूल बैग हेतु 175 रुपए, अर्थात कुल 1100 रुपए प्रदान किए जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा यदि बेहतर है। तो आगे की शिक्षा के बेहतर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए सर्वाधिक कार्य आधार शिक्षा पर किया जाना चाहिए जो कि अनवरत किया जा रहा है। इनमें भी कुछ व्यावहारिक समस्याएं हैं। केवल शिक्षक नियुक्ति या आधारभूत सुविधा बाधा देने से शिक्षा व्यवस्था सुधर नहीं जाती । औचक निरीक्षण में विद्यालयों में नदारद शिक्षकों के लिए सरकार बायोमीट्रिक प्रणाली को अपनाने की बात कर रही है। शिक्षकों की उपस्थिति को ऑनलाइन बनाने की ओर कदम बढ़ाया गया। छोटे-छोटे प्रशासनिक सुधारों का समाज पर व्यापक असर पड़ता है। उत्तर प्रदेश में परीक्षा व्यवस्था नकल माफिया का पर्याय हो चुकी थी। अपनी प्रतिभा से अंक लाने वाले छात्रों को बाहर के लोग संदेह की नजर से देखते थे। नकल माफियाओं और उनके राजनीतिक रसूख ने इन सब कार्यों को पनपने में बड़ी मदद की। इस तरह के कार्यों में लिप्त परीक्षा केंद्रों को काली सूची में डालकर सरकार ने साफ-सुथरी परीक्षा को संचालित कर पाने में सफलता पाई है। इससे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को आत्मविश्वास मिला। शिक्षा का मूल उद्देश्य सभी नागरिकों को बेहतर मानव संसाधन के रूप में विकसित करने से है । शिक्षित समाज ही बेहतर समाज को साकार करता है। शिक्षा व्यक्ति को तार्किक बनाती है, वैज्ञानिक सोच का विकास करती है। उत्तर प्रदेश के मदरसों में जो पाठ्यक्रम चल रहे थे, वे धार्मिक थे, परंतु उनमें वैज्ञानिकता का अभाव था । अतः वहां भी पाठ्यक्रम को बदल कर सीबीएसई पाठ्यक्रम लागू किया जा रहा है। वहां भी पढने वाले बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा, क्योंकि अब वे मात्र मजहब से जुड़े पाठ्यक्रम नहीं, अपितु एक पूर्ण पाठ्यक्रम पढ़ेंगे जो उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के अनेक राज्यों, जैसे आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर व मिजोरम इत्यादि राज्यों में शिक्षा सुधारों के क्षेत्रों में काम हुआ है, जैसे कि आंध्रप्रदेश सरकार ने शिक्षा में एक बड़ा कदम उठाया है।

शिक्षा सुधारों में क्रांति की दरकार
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