वायु प्रदूषण के कारण संकट में बचपन

देश के कई इलाकों में इन दिनों वायु प्रदूषण को लेकर स्थिति बहुत विकराल है। दिल्ली और आसपास के कई क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर बनी हुई है, जहां कुछ जगहों पर एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 400 के पार है, जबकि यह 50 से कम रहना चाहिए। मौसम में ठंड की शुरुआत होते ही यह हर साल की कहानी है। हाल ही में नीदरलैंड के एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित हुए आईआईटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान अध्ययन केंद्र द्वारा किए गए अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि दिल्ली में जून और अक्तूबर में प्रदूषण बाहरी कारकों से होता है, लेकिन सर्दियों में गंभीर प्रदूषण के लिए 72 प्रतिशत प्रदूषकों में स्थानीय कारक शामिल होते हैं। ऐसे में प्रदूषण कम करने के लिए समग्र योजना बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। वैसे वायु प्रदूषण अब एक वैश्विक समस्या बन चुका है, जिससे कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां जन्म ले रही हैं और लाखों लोग असमय ही काल के ग्रास बन रहे हैं। वल्ड हेल्थ फेडरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण के कारण दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों में करीब 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार हवा में छोटे प्रदूषक (अदृश्य कण) हृदय की लय, रक्त के थक्के जमने धमनियों में प्लाक बनने और रक्तचाप को प्रभावित कर रहे हैं। वायु प्रदूषण का खतरा सबसे ज्यादा छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर बना है क्योंकि वे बहुत संवेदनशील होते हैं और जहरीली हवा की चपेट में जल्दी आते हैं। दरअसल वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चे ज्यादा तेज गति से सांस लेते हैं, जिससे उनके शरीर में प्रदूषण के कण तेजी से तथा ज्यादा मात्रा में चले जाते हैं। इसी कारण वायु प्रदूषण छोटे बच्चों को बहुत जल्दी अपनी चपेट में लेता है और उनमें अस्थमा से लेकर फेफड़ों के संक्रमण तक कई बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। देश की राजधानी दिल्ली हो या देश के अन्य प्रदूषित इलाके, छोटे-छोटे बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं। हवा में बढ़ती नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें और प्रदूषक कण बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। प्रदूषित हवा में जो जहरीले 2.5 नैनोपार्टिकल होते हैं, वे छोटे बच्चों के फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर उन्हें बीमार बना रहे हैं। वायु प्रदूषण छोटे बच्चों की श्वसन प्रणाली को बहुत जल्द अपनी चपेट में लेता है, जिससे उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार, बच्चों में प्रदूषित हवा के कारण निमोनिया, फेफड़ों की समस्याएं, कमजोर दिल, ब्रोंकाइटिस, साइनस और अस्थमा जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। प्रदूषित हवा के कारण फेफड़े कमजोर होने से बच्चे अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वायु प्रदूषण के कारण समय पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं और ये दोनों ही शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर दुनियाभर में समय-समय पर परेशान करने वाली रिपोर्टें सामने आती रही हैं। किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है, लेकिन बेहद चिंताजनक स्थिति है कि कई अध्ययनों में बताया जा चुका है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है। एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है। अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रह रही माताओं के नवजात शिशु के फेफड़े सिकुडने का भी खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण बच्चों के दिमाग को भी कमजोर कर रहा है। यूनीसेफ की ‘डेंजर इन एयर’ रिपोर्ट के अनुसार भी बढ़ता प्रदूषण दिमाग को खराब कर सकता है, जिससे बच्चों के दिमागी विकास पर असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित कण फेफड़ों के जरिये शरीर के कई दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं और कुछ मामलों में ये बच्चों की दिमाग की कार्यप्रणाली पर भी असर डाल सकते हैं। हालांकि प्रदूषण का सीधा संबंध दिमाग की कार्यप्रणाली से नहीं है, लेकिन लंबे समय तक प्रदूषण रहने पर यह गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण हवा में नाइट्रोजन, सल्फर जैसी विषाक्त गैसों का स्तर बहुत ज्यादा हो गया है और जब बच्चे सांस के जरिये इसी प्रदूषित हवा को अपने शरीर में लेते हैं तो इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और विकास पर पड़ता है। ये विषाक्त गैसें बच्चों के दिमाग तक पहुंचकर उनके मानसिक और बौद्धिक विकास को धीमा कर देती हैं। नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दो हजार से भी ज्यादा लोगों पर एक व्यापक अध्ययन किया और अध्ययन के दौरान बच्चों की मानसिक सेहत पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का आकलन किया गया। कई दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि शहरों में प्रदूषित वायु और वायु प्रदूषण के बीच पलने- बढने वाले बच्चों में वयस्कावस्था में मानसिक सेहत संबंधी विकार होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। बच्चों पर प्रदूषण के कहर को लेकर वैश्विक स्तर पर कई चिंता पैदा करने वाली रिपोर्टें आ चुकी हैं। यूनीसेफ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में लगभग सभी स्थानों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस, दमा तथा फेफड़ों से संबंधित बीमारियों और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से दस फीसदी से अधिक की मौत वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। भारत में बच्चों के मस्तिष्क की कार्यप्रणाली वायु प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर साल लाखों बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के कारण हो रही हैं।

वायु प्रदूषण के कारण संकट में बचपन
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