रैगिंग से छात्रों को मुक्ति कब?

कुछ रोज पहले हिमाचल प्रदेश की एक निजी यूनिवर्सिटी में नए छात्रों की रैगिंग का मामला सामने आया। मीडिया रिपोर्ट बताती है कि रैगिंग से पीड़ित छात्र ने पुलिस को बताया कि आरोपियों ने उसे कमरे में बुलाया और फिर शराब पीने के लिए कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। बाद में आरोपियों ने कमरा बंद कर सुबह तक उसके साथ मारपीट की। मामले पर तुरंत कार्रवाई करते हुए वहां की सरकार ने शिक्षा सचिव को इसकी जांच के भी आदेश दिए हैं और जल्द रिपोर्ट देने को कहा है। रैगिंग की समस्या उच्च शिक्षा जगत से जुड़ी अत्यंत संवेदनशील, सामाजिक समस्या है, जिससे उच्च शिक्षा जगत को पूर्ण रूप से मुक्ति नहीं मिल पाई है। इस समय देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद देश के अनेक उच्च शिक्षा संस्थान इससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। आइए, छात्रों की शिक्षा संस्थानों में रैगिंग को लेकर कुछ खास बातों को जानें। एक शिक्षण संस्थान के किसी अन्य छात्र के खिलाफ एक छात्र द्वारा किए गए किसी भी शारीरिक, मौखिक या मानसिक दुव्र्यवहार को रैगिंग कहते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौनसा छात्र इसे करता है या किस छात्र के साथ यह दुव्र्यवहार किया जाता है। रैगिंग एक ऐसा शब्द है जो हर साल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में क्लास शुरू होते ही सुनाई देने लगता है। दुनियाभर में हर साल लाखों स्टूडेंट्स को इसका सामना करना पड़ता है। रैगिंग को दुनिया में अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है । इसको हेजिंग, फेगिंग, बुलिंग, प्लेजिंग और हॉर्स प्लेइंग नाम से भी जाना जाता है। रैगिंग कई कारणों से हो सकती है, जैसे आपकी त्वचा, नस्ल, धर्म, जाति, प्रजातीयता, जेंडर, यौनिक रुझान, रूप-रंग, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीय मूल, आपकी बोली, जन्म स्थान, गृह स्थान या आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण इसमें शामिल हैं। रैगिंग कई अलग-अलग रूप ले सकती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र किसी अन्य छात्र को उसके काम करने के लिए धौंस दिखाता है या किसी छात्र को कॉलेज समारोह जैसी परिसर की गतिविधियों से बाहर रखा जाता है, तो उसे रैगिंग माना जाता है। मानसिक चोट, शारीरिक दुव्र्यवहार, भेदभाव, शैक्षणिक गतिविधि में व्यवधान आदि सहित छात्रों के खिलाफ रैगिंग के विभिन्न रूपों को कानून दंडित करता है। जहां तक रैगिंग के शुरू होने से इतिहास का संबंध है, तो माना जाता है कि 7 से 8वीं शताब्दी में ग्रीस के खेल समुदायों में नए खिलाडियों में स्पोट्र्स प्रिट जगाने के उद्देश्य से रैगिंग की शुरुआत हुई । इसमें जूनियर खिलाडियों को चिढ़ाया और अपमानित किया जाता था। यह कार्य समय के साथ-साथ बढ़ता गया और रैगिंग में बदलता गया। इसके बाद सेना में भी इसको अपनाया गया। खेल और सेना के बाद रैगिंग से शिक्षण संस्थान भी नहीं बचे और छात्रों ने इसको अपनाकर भयावह रूप दे दिया। धीरे-धीरे कॉलेजों में शैक्षणिक क्षेत्र में जगह बनाने के बाद रैगिंग हिंसक हो गई और इसके लिए बाकायदा ग्रुप बन गए। 18वीं शताब्दी के दौरान विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन बनने लगे जिनमें विशेष रूप से यूरोपीय देश शामिल थे। इन संगठनों के नाम अल्फा, बीटा, कपा, एपिसिलोन, डेल्टा आदि जैसे ग्रीक अक्षरों के नाम पर रखे जाने लगे । भारत में रैगिंग की शुरुआत आजादी से पहले ही हो गई थी। इसकी शुरुआत अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा से हुई । हालांकि भारत में रैगिंग का अलग तरीका था जिसमें सीनियर और जूनियर के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए हल्की-फुल्की रैगिंग की जाती थी। इसमें शालीनता का परिचय दिया जाता था । लेकिन 90 के दशक में भारत में रैगिंग ने विकराल रूप ले लिया। इसके बाद 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही यूजीसी ने भी रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम बनाए हैं। रैगिंग पर कुछ शिक्षण संस्थानों के अपने नियम हैं। उदाहरण के लिए, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के पास रैगिंग पर दिशा-निर्देशों की अपनी एक नियमावली है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग को प्रतिबंधित करने व रोकने के लिहाज से विभिन्न राज्यों ने कानून पारित किए हैं, जो केवल उन संबंधित राज्यों में ही लागू होते हैं। क्या सभी राज्यों मे सरकारों ने ऐसे कानून बनाए हैं? यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने 16 महीनों में रैगिंग की 90 फीसदी शिकायतों के निपटारे का दावा किया है। यूजीसी के मुताबिक, एक जनवरी 2023 28 अप्रैल 2024 तक अलग-अलग यूनिवर्सिटी और उच्च शिक्षा संस्थानों से छात्रों की 1240 शिकायतें मिली हैं, जिनमें से 1113 (89.76 फीसदी) का निपटारा किया गया है। शिकायतों का निपटारा सिर्फ काफी नहीं होगा, कसूरवारों को सख्त सजा ज्यादा जरूरी होनी चाहिए। देश राज्यों में रैगिंग को लाकर जीरो टोलरेंस की नीति पर काम करना चाहिए। सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को, छात्रों के प्रवेश के समय रैगिंग रोकने के उपाय करने चाहिए। इनमें से कुछ हैं: एक सार्वजनिक घोषणा ( किसी भी प्रारूप में- प्रिंट, ऑडियो, विजुअल आदि) करें कि कॉलेज में रैगिंग पूरी तरह से निषिद्ध है, और जो कोई भी छात्रों की रैगिंग करता पाया जाएगा, उसे कानून के तहत दंडित किया जाएगा। प्रवेश की विवरणिका में रैगिंग के बारे में जानकारी दें। उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए यूजीसी विनियमनों 2009 (यूजीसी गाइडलाइंस) को मुद्रित किया जाना चाहिए। साथ ही सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारियों, जैसे कि प्रमुख, हॉस्टल वार्डन, आदि की जानकारी, साथ ही एंटी रैगिंग हेल्पलाइन का नंबर भी छपना चाहिए। आवेदन पत्र के साथ एक शपथ पत्र प्रदान करें। छात्रों और अभिभावकों के लिए ये हलफनामे में लिखा होना चाहिए कि छात्र और माता-पिता ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को पढ़ा और समझा है, वे जानते हैं कि रैगिंग निषिद्ध है और आवेदक किसी भी तरह की रैगिंग में शामिल नहीं होगा, और ऐसे किसी भी व्यवहार में लिप्त पाए जाने पर वह सजा के लिए उत्तरदायी होगा या होगी। छात्रावास के लिए आवेदन करने पर आवेदक को अतिरिक्त शपथ पत्रों पर हस्ताक्षर करने होंगे। एक दस्तावेज प्रदान करें जो आवेदक के सामाजिक व्यवहार पर रिपोर्ट करता है। इस तरह के दस्तावेज में किसी भी लिखित कदाचार का उल्लेख किया जाएगा और कॉलेज, आवेदक पर नजर रख सकता है। यह दस्तावेज आवेदन पत्र के साथ नत्थी होना चाहिए।

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