
मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री प्रह्लाद पटेल ने आम जनता को ‘भिखारी’ करार दिया है। मंत्री जी परेशान हैं कि लोग नेता को देख कर अपने कागज आगे बढ़ाने लगते हैं, मांगें करने लगते हैं, बच्चे के लिए नौकरी मांगने लगते हैं। ऐसा लगता है मानो जनता भिखारी बन भीख मांग रही हो ! संदर्भ कुछ भी हो या मंत्री की मनःस्थिति ठीक न हो, लेकिन असल भिखारी तो नेता-मंत्री ही होते हैं, जो चुनाव के दौरान एक- एक वोट के लिए जनता से गुहार करते हैं। आखिर प्रह्लाद पटेल को विधायक और मंत्री किसने बनाया ? यदि वह आम आदमी की बात नहीं सुनेंगे और उसकी मांग पूरी करने की कोशिश नहीं करेंगे, तो वह सत्ता में क्यों है? क्या जनता उनकी आरती उतारे ? लोकतंत्र में बुनियादी ताकत जनता में ही निहित है, जिसका मताधिकार विधायक-सांसद चुनता है। बाद में वे सरकार में मंत्री पद हासिल करते हैं । प्रह्लाद पटेल केंद्र की मोदी सरकार में भी मंत्री थे। वहां से उन्हें राज्य की राजनीति में लाया गया। संभव है कि वह कुंठा आज भी उनके भीतर जमा हो ! लोकतंत्र में चुने हुए चेहरे ‘जनसेवक’ कहलाते हैं । प्रधानमंत्री मोदी भी खुद को देश का ‘प्रधान सेवक’ मानते हैं। उन्होंने 11 साल की सत्ता के दौरान एक बार भी जनता को ‘भिखारी’ करार नहीं दिया। इधर कुछ नेताओं ने बदजुबान की भाषा बोलनी शुरू कर दी है। कोई विधायक एक मतदाता की औसत कीमत 2000 रुपए आंकता है और ‘वेश्या’ को उससे बेहतर मानता है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा था कि आपने मुझे वोट दिया, लेकिन इसके मायने ये नहीं हैं कि आप मेरे ‘बॉस’ हो गए। यह कैसी राजनीतिक संस्कृति है ? इधर राजनीति में मुफ्तखोरी की रेवडियां बांटने का जो चलन व्यापक होता जा रहा है, दरअसल वह एक लालच है, रिश्वत है, उसे राजनीतिक दल ‘भीख’ नहीं मान सकते। यदि किसी ने रेवडियों को ‘भीख’ करार दिया है, तो उसके लिए जिम्मेदार और दोषी भी राजनीतिक जमात है। रेवडियां बांटना उसने ही अपने स्वार्थ के मद्देनजर शुरू किया था। अब यह मुफ्तखोरी देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर रही है, क्योंकि रेवडियां बांटने के लिए पैसा चाहिए और सरकारों के पास पूंजी का घोर संकट है। ऐसा कोई भी राज्य नहीं है, जिसने रेवडियां बांटने के लिए कर्ज न लिया हो। दो उदाहरण गौरतलब हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जब ‘किसान सम्मान निधि’ की योजना का सूत्रपात किया था, तो उसके दायरे में करीब 14 करोड़ किसान थे, लेकिन अब यह संख्या घटकर करीब 8.5 करोड़ किसानों तक लुढक आई है। उन्हें ही 6000 रुपए सालाना की यह कथित रेवड़ी बांटी जा रही है। खुद प्रधानमंत्री रेवडियों की राजनीति के खिलाफ हैं, लेकिन भाजपा सरकारें भी कर्ज लेकर घी पिला रही हैं। ताजातरीन मामला दिल्ली अद्र्धराज्य की सरकार का है। 8 मार्च को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने जनता को आश्वस्त किया है कि उस तारीख तक 2500 रुपए पात्र महिलाओं के खातों में जमा करा दिए जाएंगे। यह रेवड़ी बांटने पर ही सरकार को करीब 21,000 करोड़ रुपए चाहिए । दिल्ली का बजट करीब 77,000 करोड़ रुपए का है। उसमें से करीब 64,000 करोड़ रुपए वेतन, भत्तों, पेंशन आदि में खर्च हो जाते हैं।
