यद्यपि इस समय सरकार विभिन्न माध्यमों से सामाजिक सुरक्षा का दायरा विस्तारित करने की डगर पर लगातार आगे बढ़ रही है, लेकिन अभी भी देश के अधिकांश लोग सामाजिक सुरक्षा की उपयुक्त छतरी से दूर हैं। देश के ऐसे करोड़ों लोग जो अपनी बचत से अपनी सामाजिक सुरक्षा का प्रबंध करते हैं, वे बैंकों की फिक्सड डिपाजिट तथा पोस्ट ऑफिस और अन्य सरकारी योजनाओं से जुड़ी विभिन्न बचत योजनाओं पर मिलने वाली कम ब्याज दरों से चिंतित हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 11 सितंबर को 70 साल या उससे अधिक उम्र के सभी वर्गों लोगों को आयुष्मान भारत स्कीम में शामिल करने का फैसला किया है। इस योजना के तहत 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज मिलेगा। इससे 4.5 करोड़ परिवारों को फायदा होने की उम्मीद है। इन परिवारों में 6 करोड़ बुजुर्ग हैं। इसी तरह केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को मंजूरी दी है। पिछले दिनों जीएसटी परिषद ने भी विभिन्न स्वास्थ्य और जीवन बीमा उत्पादों के प्रीमियम पर जीएसटी दर का सुझाव देने और 30 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट देने के लिए 13 सदस्यीय मंत्रिसमूह ( जीओएम) का गठन किया है। निश्चित रूप से अभी देश का आम आदमी सामाजिक सुरक्षा की उपयुक्त छतरी से दूर है। देश के करीब 57 करोड़ के श्रमबल में से तीन फीसदी से भी कम सरकारी क्षेत्र के कर्मचारी यूपीएस से लाभान्वित हुए हैं। लेकिन करोड़ों श्रमिकों और कर्मचारियों से संबंधित संगठित निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र के श्रम बल के सामने वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा चिंता का विषय बनी हुई है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि भारत में वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के मद्देनजर कुछ व्यवस्थाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। यद्यपि सरकारी कर्मचारियों के अलावा संगठित निजी क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी पेंशन की कुछ व्यवस्थाएं हैं, लेकिन वे वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा के मद्देनजर अपर्याप्त और असंतोषप्रद हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत मात्र 436 रुपए सालाना प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जाता है। यह योजना 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों के लिए उपलब्ध है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 18 से 70 वर्ष के लोग 20 रुपए सालाना प्रीमियम पर 2 लाख तक का दुर्घटना बीमा कवर प्राप्त कर सकते हैं। अटल पेंशन योजना (एपीवाई) असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर केंद्रित एक पेंशन योजना है। एपीवाई के तहत 60 साल की उम्र में 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए प्रति माह की न्यूनतम पेंशन की गारंटी ग्राहकों द्वारा योगदान के आधार पर दी जाती है। देश का कोई भी श्रमिक जिसकी उम्र 18 से 40 साल के बीच हो, एपीवाई योजना में शामिल हो सकता है। इसी तरह व्यापारियों, दुकानदारों और स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों सहित असंगठित क्षेत्रके श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने दो प्रमुख पेंशन योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं में से एक प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना (पीएम-एसवाईएम) है और दूसरी व्यापारियों, दुकानदारों और स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस-ट्रेडर्स) है । इन योजनाओं के तहत लाभार्थी 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद न्यूनतम 3000 रुपए की मासिक सुनिश्चित पेंशन प्राप्त करने के हकदार हैं। यह बात महत्वपूर्ण है कि 18-40 वर्ष की आयु के वे श्रमिक जिनकी मासिक आय 15000 रुपए से कम है, वे पीएम-एसवाईएम योजना में शामिल हो सकते हैं। और व्यापारी, दुकानदार और स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति जिनका वार्षिक कारोबार 1.5 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है, वे एनपीएस- ट्रेडर्स योजना में शामिल हो सकते हैं। वस्तुतः ये स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजनाएं हैं और लाभार्थी की प्रवेश आयु के आधार पर मासिक अंशदान 55 रुपए से 200 रुपए तक है। दोनों योजनाओं के तहत लाभार्थी द्वारा 50 फीसदी मासिक अंशदान देय है और केंद्र सरकार द्वारा समान मिलान अंशदान का भुगतान किया जाता है । ज्ञातव्य है कि देश में संगठित क्षेत्र में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा संगठन है। वस्तुतः भविष्य निधि के लिए कर्मचारी का जो अशंदान कटता है, उसका एक हिस्सा पेंशन फंड के लिए कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएफ) में जाता है। पेंशन के लिए शर्त यह है कि कर्मचारी को कम से कम 10 साल तक नौकरी पूरी करनी होती है और पीएफ अकाउंट में अंशदान करना होता है। मौजूदा नियमों के अनुसार पेंशन योग्य वेतन की अधिकतम सीमा 15 हजार रुपए है। यदि हम ईपीएफ के तहत पेंशन संबंधी राशि की ओर देखें तो पाते हैं कि स्टैंडर्ड गणना के तहत ईपीएफ सदस्य को न्यूनतम 1000 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिल पाती है। इसे 7500 रुपए प्रति माह करने की मांग लम्बे समय से हो रही है। असंगठित क्षेत्र के श्रम बल द्वारा सरकार के समक्ष उपयुक्त पेंशन की मांग प्रस्तुत की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं कि इस समय गिग वर्क सहित नई निर्मित नौकरियों में से ज्यादातर नौकरियां असंगठित क्षेत्र में निर्मित हो रही हैं और इनमें पेंशन संबंधी सुरक्षा नहीं है। नीति आयोग ने ‘इंडियाज बूमिंग गिग एंड प्लेटफॉर्म इकोनॉमी’ शीर्षक से एक रिपोर्ट लॉन्च की है। उसमें अन्य बातों के साथ ही गिग वर्कर्स और उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की गई है, जिसमें बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं शामिल हैं। एक चिंताजनक प्रश्न यह भी है कि जहां असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोग पेंशन व्यवस्था से दूर हैं, वहीं बचत पर घटी हुई ब्याज दर और विभिन्न आकर्षण कम होने के कारण देश में सामाजिक सुरक्षा की चिंताएं बढ़ रही हैं। अभी भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक सुरक्षा (सोशल प्रोटेक्शन) की छतरी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों पर देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन निर्भर होता है, जो अपनी छोटी बचतों के जरिए जिंदगी के कई महत्वपूर्ण कामों को निपटाने की व्यवस्था सोचे हुए हैं। ऐसे में उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा की अहमियत दिखाई देती है। अतएव अब सरकार को देश के आम आदमी के लिए सामाजिक सुरक्षा के बारे में गंभीरतापूर्वक ध्यान देना होगा और निजी क्षेत्र की पेंशन योजनाओं को भी आकर्षक बनाना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की न्यूनतम पेंशन बढ़ाने के लिए लम्बे समय से लंबित मांग पर विचार किया जाना होगा, जिसमें निजी संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी सरकार ऐसी पेंशन स्कीम लाए जो प्रतिमाह 7500 रुपए तक या उपयुक्त पेंशन धनराशि सुनिश्चित कर सके। जहां कर्मचारी भविष्य निधि के तहत पेंशन योग्य वेतन की 15000 रुपए की सीमा को बढ़ाकर 25000 रुपए किया जाना उपयुक्त होगा, वहीं अटल पेंशन योजना को आकर्षक बनाया जाना लाभप्रद होगा।