महंगाई लक्ष्य के अनुरूप रखना जरूरी

यकीनन दीपावली के त्योहार के बाद भी नवंबर में प्याज और आलू के साथ अन्य सब्जियों के तेज दाम और खाने के तेल के दाम भी ऊंचे रहने से महंगाई बढ़ी हुई है। हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस समय देश में खाद्य कीमतों में वृद्धि से खुदरा महंगाई बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में महंगाई शहरी इलाकों की तुलना में ज्यादा बढ़ी है। विदेशों से देश में आयात की जा रही विभिन्न वस्तुओं की कीमतों में इजाफे से भी महंगाई बढ़ी है। ऐसे में महंगाई नियंत्रण के मद्देनजर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया लंबी अवधि तक ब्याज दर को स्थिर रख सकता है। यह बात महत्वपूर्ण है कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 के तहत रिजर्व बैंक के द्वारा ब्याज दरों की यथास्थिति, सरकार के महंगाई नियंत्रण के उपाय, अच्छे मानसून तथा स्थिर आपूर्ति श्रृंखला के अच्छे आधार के बावजूद सरकार को खुदरा महंगाई लक्ष्य के अनुरूप 4.5 फीसदी के दायरे में रखने की चुनौती के मद्देनजर नई बहुआयामी रणनीति के साथ आगे बढना होगा। गौरतलब है कि विगत 14 अक्टूबर को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2024 में खुदरा महंगाई दर 5.49 प्रतिशत दर्ज की गई, जो अगस्त में 3.65 प्रतिशत थी। आलू, प्याज, टमाटर के साथ हरी सब्जियों की कीमतों में करीब 36 फीसदी वृद्धि तथा महंगी हुई दालों ने सितंबर माह में खाद्य वस्तुओं की खुदरा महंगाई दर को नौ माह के उच्चतम स्तर 9.24 प्रतिशत पर पहुंचा दिया, जो कि माह अगस्त में 5.66 प्रतिशत थी। खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल से सितंबर में थोक महंगाई दर भी 1.84 प्रतिशत पर पहुंची है, जो कि माह अगस्त में 1.31 प्रतिशत थी। खुदरा और थोक महंगाई मुख्य रूप से खाद्य उत्पादों, अन्य विनिर्माण, मोटर वाहनों, मशीनरी और उपकरणों निर्माण आदि की कीमतों में वृद्धि के कारण दिखाई दे रही है। स्थिति यह है कि आलू, प्याज और टमाटर के दाम कम नहीं होने से जो खुदरा महंगाई दर पांच प्रतिशत के पार हो गई, वह इस माह नवंबर में भी पांच फीसदी के पार जा सकती है। हमें देश में महंगाई की चिंता इसलिए भी करनी है, क्योंकि वैश्विक बाजार में पश्चिम एशिया संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमतें बढने की आशंका बनी हुई है। चूंकि ईरान दुनिया के सबसे बड़े कच्चा तेल उत्पादकों में से एक है और यह देश पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाकों में स्थित है, ऐसे में ईरान के तेल बाजार में अस्थिरता से कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने पर पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होने लगेंगे। इसका असर भारत पर विशेष रूप से पड़ेगा, क्योंकि भारत अपनी तेल की जरूरतों के करीब 80 फीसदी तक आयात पर निर्भर है। एक चिंताजनक बात यह भी है कि ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष का असर वैश्विक शिपिंग रूट्स पर भी पड़ सकता है, खासकर होर्मुज जलडमरूमध्य पर। यह वैश्विक यातायात का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण मार्ग है। दुनिया को मिलने वाला करीब एक- तिहाई तेल और खाद्य व कृषि उत्पादों का अधिकांश यातायात इसी मार्ग से होता है। ऐसे में इस क्षेत्र में शिपिंग बाधित होने से ग्लोबल सप्लाई चैन प्रभावित हो सकती है। इससे खाद्य पदार्थों, जैसे कि गेहूं, चीनी और अन्य कृषि उत्पादों की कीमतें और बढ़ सकती ऐसे में अब एक बार फिर सरकार को महंगाई नियंत्रण के लिए बहुआयामी नई रणनीति की डगर पर आगे बढना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में विगत 9 अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक की क्रेडिट पॉलिसी कमेटी बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि भारत में महंगाई बढने के जोखिम के मद्देनजर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है। यह लगातार 10वीं बार है जबकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। रेपो रेट 6.50 प्रतिशत पर बरकरार है और बैंक रेट 6.75 प्रतिशत पर स्थिर रखी गई हैं। इस मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में तेज विकास दर की बजाय महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दी गई है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दो माह बाद दिसंबर 2024 में भी आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करने की स्थिति में नहीं होगा। निश्चित रूप से इस बार देश में अच्छे मानसून से खाद्यान्न, दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा और इनकी सप्लाई बढने से इनकी कीमतें कम होंगी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि मौद्रिक प्रबंधन और सरकार के द्वारा तत्परता से खाद्यान्न निर्यात नीति और स्टॉक सीमा निर्धारण सहित विभिन्न उपाय बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण कर सकेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि 16 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश के करोड़ों किसानों को उनकी रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में जो भारी बढ़ोतरी की है। उससे ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई की मार झेल रहे किसानों को लाभ होगा। साथ ही सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में तीन फीसदी का जो इजाफा किया गया है, उससे कर्मचारियों को महंगाई से राहत मिलेगी। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक खाद्य महंगाई नियंत्रण के लिए चालू वित्त वर्ष 2024- 25 के बजट के तहत की गई व्यवस्थाओं का तेजी से क्रियान्वयन किया जा रहा है। बजट के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग को दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10000 करोड़ रुपए दिए गए हैं। जहां इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टॉक को रखने के लिए किया जाएगा, वहीं जरूरी होने पर इन अन्य खाद्य वस्तुओं के बढ़े दामों को नियंत्रित करने के लिए भी इस कोष का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके अलावा चालू वित्त वर्ष के बजट के तहत इस वर्ष खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के लिए खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग के लिए ऋणों की राशि दोगुनी करके 50000 करोड़ रुपए सुनिश्चित की गई है, जो उल्लेखनीय है। निश्चित रूप से खाद्य पदार्थों की महंगाई रोकने के लिए सरकार के द्वारा तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी को रोकने के बहुआयामी प्रयासों की कारगर रणनीति पर आगे बढना होगा। चूंकि देश में फसल कटाई के बाद की उपयुक्त व्यवस्था न होने से 12 से 14 फीसदी तक खाद्यान्न और करीब 35 फीसदी तक सब्जी और फलों की पैदावार बर्बाद हो जाती है, ऐसे में इस बर्बादी को रोकने के लिए खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग की कारगर व्यवस्था की डगर पर बढ़ना होगा। हम उम्मीद करें कि इन विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से देश में खुदरा महंगाई को नियंत्रित किया जा सकेगा और चालू वित्त वर्ष 2024-25 में खुदरा महंगाई लक्ष्य के अनुरूप 4.5 फीसदी तथा आगामी वर्ष 2025- 26 में चार फीसदी के दायरे में रहते हुए दिखाई दे सकेगी। ऐसी स्थिति से जहां देश के आम आदमी को राहत मिलेगी, वहीं अर्थव्यवस्था को भी गतिशीलता मिलेगी। महंगाई को रोकना वक्त की मांग है। मध्यम वर्ग सर्वाधिक प्रभावित वर्ग है।

महंगाई लक्ष्य के अनुरूप रखना जरूरी
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