कहते हैं कि जो राजा या शासन पद्धति जनभावनाओं को नहीं समझ पाते हैं, रणनीतिक रूप से अकस्मात गोलबंद किए हुए उग्र लोगों के द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं। मुगलिया सल्तनत से लेकर ब्रिटिश साम्राज्य का हश्र हमारे आपके सामने है। वहीं, एक बार नहीं बल्कि कई दफे हुआ पारिवारिक लोकतांत्रिक सत्ता का पतन भी आप सबके सामने हैं जबकि इसको यथावत बनाए रखने के लिए कथित धर्मनिरपेक्षता व जातिवाद की आड़ लेकर क्रमशः अल्पसंख्यक और आरक्षण जैसे पक्षपाती विचारों का भी पालन-पोषण किया गया तथा तुष्टिकरण की नीतियों तक को बेहिसाब बढ़ावा दिया गया। फिर भी हश्र सबके सामने है। वैश्विक और भारतीय परिस्थिति भी अब इस बात की चुगली कर रही है कि इन्हें शह देने वाले संविधानों व उस पर आधारित कुछ अतिवादी कानूनों का भी देर-सवेर कुछ यही हश्र होने वाला है, आज नहीं तो निश्चय कल ! साथ ही उस बनावटी लोकतंत्र का भी जो पूंजीवादी देशों की रखैल बन चुकी है क्योंकि वे इसका मनमाफिक दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसे में हमारी संसद और सर्वोच्च न्यायालय दोनों को दूरदर्शिता दिखानी होगी, और पाकिस्तान बंगलादेश समेत अन्य इस्लामिक देशों के बदलते प्रशासनिक घटनाक्रमों से सबक लेना होगा अन्यथा भारत को भी आतंकवादी ताकतें उसी तरह से नष्ट कर देंगी जैसे उदाहरण इस्लामिक देशों में भरे पड़े हैं। अलबत्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘हिंदूवादी जज’ जस्टिस शेखर कुमार यादव के ‘बहुमत से चलेगा देश’ जैसे स्पष्टवादी बयान को भी उपर्युक्त नसीहतों की कसौटी पर ही कसा जाना चाहिए अन्यथा संसद और सुप्रीम कोर्ट की ‘मनमर्जी (षडयंत्रकारी धर्मनिरपेक्षता / पंथनिरपेक्षता के संदर्भ में) भारत को भी ‘अशांत इस्लामिक मुल्क’ बना देगी जो हमारे कतिपय धर्मनिरपेक्ष दलों का अघोषित सियासी एजेंडा है जिससे समय रहते ही सावधान हो जाने की जरूरत है। यदि भारत के विद्वान न्यायाधीश, अधिवक्ता, प्रोफेसर, राजनेता, पत्रकार और बुद्धिजीवियों के समूह इस तथ्य को अब और नजरअंदाज करेंगे तो अशांत मुल्क के रूप में अगला नम्बर हमारे देश का ही होगा जिसके ट्रेलर मोदी काल में जहां तहां विपक्ष के इशारे पर दिखाई भी दे रहे हैं। देखा जाए तो विश्व हिंदू विपक्ष के इशारे पर दिखाई भी दे रहे हैं। देखा जाए तो विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक बौद्धिक व राष्ट्रवादी प्रोग्राम ‘समान नागरिक संहिताः एक संवैधानिक अनिवार्यता’ विषय पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘हिंदूवादी जज’ जस्टिस शेखर कुमार यादव के द्वारा दिए गए ‘विवादित बयान’ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया जाना उचित है लेकिन इसकी सांगोपांग व्याख्या से पहले वह अपने पड़ोसी देशों के हश्र भी देख ले, जहां भारत को कमजोर करने वाले अमेरिकी और चीनी एजेंडे के अनुगामियों ने, उग्रपंथियों ने वहां की धर्मनिरपेक्ष सरकारों को अपदस्थ कर दिया और हिंदुओं पर नाना प्रकार के जुल्म कर रहे हैं। उनकी घटती आबादी इसका सबूत है। जबकि भारत की उदारवादी संसदीय नीतियों और उनकी सुप्रीम व्याख्या की अदूरदर्शिता से यहां की जनसंख्या बेतहाशा बढ़ी है, बेरोजगारी और भरण-पोषण का संकट उतपन्न हुआ है है, बेरोजगारी और भरण पोषण का संकट उत्पन्न हुआ है और कानून के उस शासन को भी अब कथित ‘भीड़तंत्र’ के द्वारा जगह-जगह चुनौती मिल रही है। इस सूरते हाल पर हमारी संसद और सुप्रीम कोर्ट की किंकर्तव्यविमूढ़ता भी जनहित के नजरिए से सवालों के घेरे में है, क्योंकि शांतिपूर्ण तरीके से जीना अब इस देश में भी मुहाल होता जा रहा है, इस्लामिक देशों की तरह। ऐसा इसलिए कि दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में रहती है और इन्हें शिक्षित करने और उग्रपंथी विचारों से अलग रखने में हमारा प्रशासन बुरी तरह से विफल प्रतीत हुआ है। कश्मीर, पश्चिम बंगाल, केरल के अलावा जहां भी मुस्लिमों की ज्यादा आबादी है, वहां पुलिस प्रशासन की चुनौतियों को भी समझा जा सकता है। यह बात आज देश के हर बुद्धिजीवी को अखड़ रही है कि आखिर वोट बैंक की धर्मनिरपेक्ष राजनीति हमें किधर ले जा रही है और इसमें बदलाव के लिए क्या किया जा सकता है। कहना न होगा कि हमारे निर्वाचित नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों व न्यायाधीशों की तरह ही स्पष्टवादी बुद्धिजीवियों के भी कुछ विशेषाधिकार हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संरक्षित हैं। और जनमत निर्माण में यथोचित योगदान देते आए हैं, इसलिए जस्टिस यादव के विचारों को भी हमें इसी कसौटी पर कसने की जरूरत है क्योंकि उन्होंने अपने सम्बोधन के क्रम में ही यह साफ कर दिया था कि ये बातें वे जज की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम प्रबुद्ध भारतीय की हैसियत से कह रहे हैं और इस पर अडिग रहने की जरूरत है। वर्तमान में शेखर कुमार यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1988 में लॉ ग्रेजुएट शेखर कुमार यादव ने 1990 में वकील के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। उन्हें 12 दिसंबर, 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। 26 मार्च 2021 को उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। अपनी पदोन्नति से पहले उत्तर प्रदेश राज्य के स्थायी वकील रहे। भारत संघ के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील रहे। यूपी की अदालतों में रेलवे के लिए स्थायी वकील का पद संभाला था। जस्टिस शेखर यादव 2026 में रिटायर होंगे। गत 1 सितंबर, 2021 को जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा था कि वैज्ञानिकों का मानना है कि गाय ही एकमात्र जानवर है जो ऑक्सीजन छोड़ती है।
