सहरसा, (हि.स.) । नेपाल के सीमावर्ती इलाके में काली पूजन की प्रथा सर्वव्यापत है। इन्हीं में काली के स्वरूप गढ़ीमाई मंदिर प्रसिद्ध देवस्थान है । यह बिहार के सीमा से सटे नेपाल बारा जिले वरियारपुर में स्थित है। प्रत्येक पांच साल के विश्वप्रसिद्ध बलि का मेला यहां लगता है जिसमें हजारों की संख्या में पशु काटे जाते हैं। इस मेले में सर्वाधिक पशु इन्हीं बिहार के सीमा से पूजा के नाम पर और पूजा में बलि के लिए तस्करी करके भेजे जाते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए ह्यूमेन सोसायटी इंटरनेशन ने मुहिम चलाया है। जिसके अंतर्गत गढ़ीमाई मंदिर में बलि पर रोक लगाने की अपील की गई। आध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रशांत, इंडिया, पीपल फॉर एनिमल ने पशु बलि पर रोक लगाने के लिए एक सार्थक मुहिम चला रहे हैं। मुक पशु पक्षियों को चढ़ावा या बलि के रूप में देवता को समर्पित करने की प्रथा कहीं न कहीं अंधविश्वास से भी जुड़ी हुई है। धर्म की सत्ता और बलि की वास्तविकता व इसके तर्कसंगत अर्थ पर प्रकाश डालते हुए आचार्य प्रशांत ने कहा कि यह सनातन से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह एक अधार्मिक कृत्य है। ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल (इंडिया) की प्रबंध निदेशिका आलोकपर्णा सेनगुप्ता ने कहा कि नेपाल में गढ़ीमाई उत्सव में हजारों पशुओं की बलि पर रोक लगाने में सोसायटी के सामूहिक प्रयास को आंशिक सफलता मिली है ।यहां अधिकांश पशु बिहार से भेजे जाते अधिकांश पशु बिहार से भेजे जाते हैं, जिस पर बिहार सरकार से मदद मांगी गई है। पीपल फॉर एनिमल की ट्रस्टी गौरी मौलेखी ने कहा कि मुक पशुओं की बलि से देवता की प्रसन्नता आज की विकसित मानवीय जीवन में कदापि प्रसांगिक नहीं है । उसकी जगह पर नारियल, कद्दू का चढ़ावा ज्यादा श्रेयकर है। प्रत्येक पांच सालों के बाद गढ़ीमाई मंदिर परिसर का रक्त रंजित प्रक्षेत्र कई तरह के कीटाणुओं और वायरस का क्षेत्र भी बन जाता है। जिससे हर वक्त बीमारी फैलने का अंदेशा बना रहता है। सोसायटी इस संदर्भ में जन जागरण के कार्यक्रम भी चलाती रही है और स्थानीय नागरिकों को पशु हत्या के निषेध के लिए प्रेरित भी करती है। ज्ञात हो कि यहां प्रत्येक पांच साल बाद लगने वाले मेले में हजारों की संख्या में भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गा, सूअर, कबूतर, हंस, चूहा की बलि दी जाती है। जिससे पूरा क्षेत्र जानवरों के रक्त और मृत शरीर से भर जाता है। इनसे उढती सरांध से सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। यह अपने आप में एक हृदय विदारक दृश्य उपस्थित करता है ।इस संदर्भ में आचार्य प्रशांत, मेनका गांधी, ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल, पीपल फॉर एनिमल्स की ओर से बिहार सरकार के मुख्य सचिव को एक पत्र भी सोपा गया, जिसमें सीमा पर अवैध पशुधन के तस्करी पर रोक लगाने की भी मांग की गई। इससे बड़ा फायदा यह होगा कि इस पार के लोग व मधेशी को बलि के लिए पशु आसानी से उपलब्ध नहीं होगा ।