धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता आरक्षण : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर कोर्ट नहीं दिया जा सकता । पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने कलकत्ता हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दी थी। राज्य में जिन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा दिया गया था, उसे हाईकोर्ट ने अवैध करार दिया था। याचिका पर सुनवाई जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने की। बेंच ने कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर है। पश्चिम बंगाल में कई जातियों को ओबीसी का दर्जा दिया गया था । हाईकोर्ट इसे अवैध बताते हुए खारिज कर दिया था । कोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक नौकरियों और राज्य – प्रशासित शिक्षण संस्थानों में इन जातियों के लिए आरक्षण अवैध था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र पैमाना प्रतीत होता है। साथी ही कोर्ट ने यह भी कहा कि 77 मुस्लिम जातियों को पिछड़ा घोषित करना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि जिन लोगों को इन जातियों के आरक्षण का लाभ पहले मिल चुका था, उनकी सेवाओं या चयन प्रक्रिया पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा। हाईकोर्ट ने अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 तक 77 जातियों क दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था। इसके अलावा, 37 जातियों के लिए ओबीसी आरक्षण को भी रद्द कर दिया गया था, जो 2012 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग कानून के तहत दिया गया था। आज हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट वकीलों से मामले पर विस्तृत जानकारी मांगी। कपिल सिब्बल ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है, जो हजारों छात्रों और नौकरी के इच्छुक लोगों के अधिकारियों को प्रभावित करता है । सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम आदेश जारी करे और उस पर अस्थायी रोक लगाए। सुप्रीम कोर्ट ने अन्य वकीलों की भी दलील सुनी, जिसमें वरिष्ठ वकील पी. एस. पटवालिया भी शामिल थे, जो मामले में कुछ प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सात जनवरी को इस मामले में सुनवाई करेगा।

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