अक्टूबर में शेयर बाजार में आई जोरदार गिरावट से निवेशक पहले से ही परेशान हैं। इस बीच आज आई एक खबर ने उनके तनाव में और बढ़ोतरी कर दी है। इस खबर के मुताबिक देश में कम से कम 597 कंपनियों के मालिकों या प्रमोटर्स ने सितंबर में खत्म हुई तिमाही के दौरान कंपनी में अपनी शेयर होल्डिंग कम कर दी है यानी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी घटा दी है। वहीं करीब 200 कंपनियों के मालिकों या प्रमोटर्स ने अपनी हिस्सेदारी में इजाफा भी किया है। स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों में से लगभग 3,300 कंपनियों ने सितंबर में खत्म हुई तिमाही के बाद अपनी शेयर होल्डिंग से जुड़े आंकड़े जारी कर दिए हैं। इनमें से 597 कंपनियों के प्रमोटर्स ने अपनी हिस्सेदारी घटाई है, जबकि लगभग 200 कंपनियों के प्रमोटर्स के हिस्सेदारी में इजाफा हुआ है, वहीं लगभग 2,500 कंपनियों के मालिकों या प्रमोटर्स के शेयर होल्डिंग डेटा में कोई बदलाव नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जब सभी लिस्टेड कंपनियों का शेयर होल्डिंग डेटा जारी हो जाएगा तो निवेशकों की हिस्सेदारी कम करने वाली कंपनियों की संख्या में और भी बढ़ोतरी हो सकती है। शेयर होल्डिंग डेटा के मुताबिक जिन कुछ बड़ी कंपनियों में प्रमोटर्स ने अपने हिस्सेदारी घटाई है, उनमें अडाणी एनर्जी सॉल्यूशंस, टाटा मोटर्स, स्पाइसजेट, प्रेस्टीज एस्टेट प्रोजेक्ट्स और इंटरग्लोब एविवशन (इंडिगो) के नाम शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर कंपनियों की ओर से पुराने कर्जों को निपटाने और काम का विस्तार करने के लिए प्रमोटर्स की शेयर होल्डिंग में कमी करने क ऐलान पहले ही कर दिया गया था। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रमोटर्स द्वारा अपनी हिस्सेदारी में कमी करने की बात को लेकर अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अभी प्रमोटर्स द्वारा हिस्सेदारी में कमी करने की एक बड़ी वजह शेयरों का ऊंचा वैल्यूएशन है। कई कंपनियों के प्रमोटर्स ऊंचे वैल्यूएशन का फायदा उठाते हुए अपनी हिस्सेदारी में कुछ कमी करके पुराने कर्जों का निपटारा कर देते हैं। वहीं कुछ प्रमोटर्स अपनी लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए भी ऊंचे वैल्यूएशन के दौरान अपने हिस्सेदारी कम करने का तरीका अपनाते हैं। धामी सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट प्रशांत धामी का कहना है कि प्रमोटर्स पर अपनी कंपनियां में अपनी हिस्सेदारी को बेचने पर रोक लगाने का कोई नियम नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रमोटर्स कई वजहों से अपनी हिस्सेदारी कम कर सकते हैं। इन वजहों में पर्सनल फाइनेंस की बात भी कही जा सकती है। इसके साथ ही कंपनी के रणनीतिक और व्यावसायिक फैसलों की वजह से भी प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी कम करने या बढ़ाने का तरीका अपनाते हैं। कई बार प्रमोटर्स अपने पुराने कर्ज को चुकाने, पूंजी को डायवर्सिफाई करने, किसी दूसरे वेंचर में पैसा लगाने या व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता में बने रहने के लिए भी अपनी हिस्सेदारी कम करके पूंजी जुटाते हैं। प्रशांत धामी का कहना है कि प्रमोटर्स द्वारा अपनी हिस्सेदारी कम करने की बात को लेकर तब तक चिंता नहीं करनी चाहिए, जब तक कि ये बिक्री मजबूत वैल्यूएशन और बिजनेस फंडामेंटल्स के साथ हो रही हो। ऐसा होने पर इसे व्यवसाय की स्वस्थ और सुविचारित रणनीति माना जा सकता है। कई बार प्रमोटर्स अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए पूंजी जुटाने के इरादे से भी हाई वैल्यूएशन के दौरान अपने हिस्सेदारी कम करने का तरीका अपनाते हैं। धामी का कहना है कि निवेशकों को हमेशा ही प्रमोटर्स की हिस्सेदारी कम करने की वजहों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि जब तक प्रमोटर्स की हिस्सेदारी में कमी कंपनी के कारोबार का विस्तार करने या कंपनी के पुराने कर्जों को कम करने या कंपनी के पुराने कर्जों को कम करने के लिए की जाती है, तब तक उसे गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर प्रमोटर्स व्यक्तिगत उद्देश्यों से यानी कंपनी से पीछा छुड़ाने के लिए अपनी हिस्सेदारी घटना शुरू करते हैं तो ये बात निवेशकों के हितों पर निगेटिव असर डाल सकती है। इसी तरह अलकनंदा फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ रमेश का गौतम का भी कहना है कि सितंबर की तिमाही में घरेलू शेयर बाजार लगातार मजबूती के रिकॉर्ड बना रहा था। ज्यादातर कंपनियां हाई प्रीमियम वैल्यू पर कारोबार कर रही थीं। यही वजह है कि सितंबर तिमाही के दौरान प्रमोटर्स ने अपनी हिस्सेदारी कम करने का तरीका अपनाया। इनमें से कई प्रमोटर्स ने अपने कारोबार को और बढ़ाने का ऐलान भी किया है, वहीं कई प्रमोटर्स ने मार्केट में करेक्शन होने के बाद अपनी हिस्सेदारी को दोबारा बढ़ाने की रणनीति भी बना रखी है। इसलिए निवेशकों को सितंबर तिमाही में प्रमोटर्स द्वारा अपने हिस्सेदारी में कमी करने की बात को लेकर अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए, लेकिन उन्हें प्रमोटर्स द्वारा अपनी हिस्सेदारी कम करने की वजहों पर लगातार नजर बनाए रखना चाहिए ।