चामुंडा के दयनीय दर्शन

चामुंडा के दयनीय दर्शन
चामुंडा के दयनीय दर्शन

योजनाओं परियोजनाओं के बही खातों में रिसाव की राजनीति ने मंजर और मंदिर दोनों पर रहम न किया।

राजनीति मंदिरों की दहलीज को भी छील देती है और इसके आईनों में श्रद्धा की तौहीन देखनी है, तो चामुंडा मंदिर की घंटियों की शिकायत सुन लें। श्रद्धा के एक बड़े और पाक परिसर को किसकी दया चाहिए, यहां बजट और प्रबंधन दोनों कसूरवार हैं। एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना के तहत चामुंडा मंदिर में घोषणाओं का दरबार और एतबार सजा था। एक मास्टर प्लान बना और इसके तहत नक्शे पर संभावनाओं के कई अक्स उभरे, लेकिन आज ये सभी तितर बितर हैं। चामुंडा परिसर में फैली अव्यवस्था का आलम यह कि सारे गार्डन उजड़ गए। प्रशासन की देखरेख में हर दिन कोई न कोई वीआईपी दर्शन कराए जाते हैं, लेकिन चामुंडा मंदिर के अपने दर्शन दयनीय हो चुके हैं। बेशक कांगड़ा को पर्यटन की राजधानी बनाने के संकल्प परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन चामुंडा मंदिर की ओर एडीबी मुड़कर नहीं देख रहा । तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार तो चामुंडा से हिमानी चामुंडा तक रोप-वे परियोजना तक पहुंच गई थी, लेकिन बीच में जयराम सरकार चुपचाप निकल गई और अब वर्तमान सरकार की कसौटियों में भी इस स्थान के गुंबद पर अंधेरा है। मान लें कि बड़ी परियोजनाओं की सूची में अब चामुंडा शरीक नहीं हो सकता, लेकिन प्रबंधन तो सही हो सकता है। मंदिर परिसर में साफ सफाई की दुर्दशा का हाल देख कर तरस आता है। गार्डन एरिया का घास बर्बादी के अलावा झाडियों को निमंत्रण दे चुका है यानी पर्यटक अगर इनकी ओर आएं तो निराशा होगी। यह कौनसी पर्यटन राजधानी है, जिसे सहेजने-संवारने में मंदिर अधिकारी या जिला प्रशासन असमर्थ है। अगर मंदिरों की सफाई, इनके सौंदर्यीकरण में उगे पौधों या गार्डन की घास तक की रखवाली नहीं हो सकती, तो सरकार के अधीन यह परचम निराशाजनक है। कांगड़ा, ज्वालामुखी व दियोटसिद्ध मंदिरों की स्थिति भी इससे कहीं ज्यादा बेहतर नहीं है। आश्चर्य तो यह कि मंदिर आय से अगर परिसर का रखरखाव ही नहीं हो सकता, तो यह प्रशासनिक लापरवाही है। पर्यटन राजधानी का मतलब चंद इमारतें नहीं और न ही अधोसंरचना को चबूतरों पर सजाना है, बल्कि पर्यटक के सामने हिमाचल की पेशकश को सुधारना है। करीब अस्सी प्रतिशत पर्यटक हिमाचल में किसी न किसी धार्मिक रास्ते से ही आते हैं, लेकिन मंदिर व्यवस्था के नाम पर कोई सुखद उदाहरण नहीं । चामुंडा में संभावनाओं का परिदृश्य बेहतर हो सकता है बशर्ते मूल परियोजना को बजट का सहारा मिले, लेकिन इससे भी पहले प्रशासनिक व्यवस्था को सलीका सिखाना होगा। जवाबदेही की कमी का हर कारण चामुडा मंदिर परिसर की उखड़ती टाइलों, उजड़ती घास, गंदगी, अव्यवस्था और वीआईपी श्रद्धा में मिलेगा। आश्चर्य यह कि मंदिर आय से श्रद्धा के सरोकारों का धन्यवाद भी ज्ञापित नहीं हो रहा। मंदिर आय पर निगाह रखने वाली सियासत ने अवांछित खर्चों की सूची लंबी कर ली है, लेकिन परिसर की पवित्रता क्षीण हो गई। चामंडा मंदिर की आय यूं तो अपनी आव भगत में तो वीआईपी लोगों के चरण स्पर्श करती है, लेकिन अपने ही परिसर का रखरखाव नहीं कर पाती। ऐसे में तमाम बड़े मंदिरों के प्रबंधन की आचार संहिता आवश्यक है।

चामुंडा के दयनीय दर्शन
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