खिदराणा के युद्ध के बाद गुरु जी भ्रमण करते- करते तलवण्डी साबो पहुंचे। इस स्थान पर गुरु जी कुछ देर के लिए स्थायी रूप से रहे। गुरु जी का यह निवास साहित्यिक दृष्टि से अत्यन्त महत्व रखता है। गुरु ग्रन्थ का आज जो रूप उपलब्ध होता है, उसे वर्तमान रूप यहीं दिया गया था। इसी स्थान पर से गुरु जी ने औरंगजेब को दक्षिण में एक पत्र लिखकर भेजा जो जफरनामा के नाम से प्रसिद्ध है। भाई व्यासिंह के हाथ जफरनामा औरंगजेब के नाम प्रेषित करके गुरु जी पंजाब से दक्षिण की ओर चल पड़े। मार्ग में ही उन्हें औरंगजेब की मृत्यु की सूचना मिली। औरंगजेब की मृत्यु ने स्थिति को एकदम बदलकर रख दिया। अतः गुरु जी तुरन्त दिल्ली की ओर चल पड़े। औरंगजेब की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्रों मुअज्जम तथा आजम में सत्ता प्राप्ति के लिए युद्ध की तैयारियां होने लगीं। औरंगजेब का ज्येष्ठ पुत्र मुअज्जम गुरु जी का पूर्व परिचित था। उसने गुरु जी से सहायता की प्रार्थना की। गुरु जी ने उसे विजय का आश्वासन तो दिया लेकिन सैनिक सहायता दी या नहीं, इसका निश्चित प्रमाण नहीं मिलता । अस्तु दोनों भाईयों का आगरे के निकट जमकर युद्ध हुआ और मुअज्जम बहादुरशाह के नाम से गद्दी पर बैठा। इस सारे कांड के बाद गुरु जी दिल्ली से आगरे की ओर चल पड़े और वहीं रहकर धर्म प्रचार करने लगे । बहादुर शाह ने एक दिन गुरु गोबिंद सिंह जी को मिलने के लिए बुलाया और एक मूल्यवान खिलअत, एक घुगधुगी और एक कलगी भेंट की । गुरु जी आगरे में टिके रहे। 1707 को बहादुर शाह राजपूतों का विद्रोह दबाने के लिए राजस्थान की ओर चल दिया और वहीं से दक्षिण में अपने छोटे भाई के विद्रोह को कुचलने के लिए दक्षिण की ओर चल दिया। कुछ समय के बाद गुरु जी नान्देड़ पहुंच गए। नान्देड़ में रहते हुए गुरु जी को एक महन्त – वैरागी के बारे में पता चला, जिसके बारे में कहा जाता था कि उसने जिन्न भूत अपने अधीन में किए हुए हैं। गुरु जी उस विलक्षण व्यक्ति को देखने उसके डेरे पर गए। बैरागी बाहर गया हुआ था। गुरु जी उसके आसन पर बैठ गए। बैरागी ने बाहर से आकर गुरु जी को आसन से गिराने के लिए तात्रिक विद्या के अनेक प्रयोग किए, लेकिन सफलता न मिली। वह गुरु जी के चरणों पर गिर पड़ा। गुरु जी ने उसे कर्म का उपदेश दिया। मातृभूमि की दयनीय अवस्था का चित्रण किया। विदेशियों के