लद्दाख सीमा पर गश्ती को लेकर भारत और चीन के बीच सहमति बन तो गई है, लेकिन उस पर आंख मूंदकर भरोसा करना जल्दबाजी और नासमझी होगी। अतीत में चीन के रवैये को देखते हुए भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह कहना समीचीन ही है कि भरोसा बहाली में समय लगेगा। रूस- यूक्रेन और इजराइल – हिजबुल्ला संघर्ष के संदर्भ में भारत और चीन के बीच हुए इस समझौते को बेहतर परिणति ही माना जाना चाहिए। 15 और 16 जून 2020 की रात को बिना हथियारों के भारतीय सैनिकों ने लाल सेना के भले ही दांत खट्टे कर दिए, लेकिन भारतीय विपक्षी दलों ने उस मौके को उत्तेजना की राजनीति के लिए बेहतर मौके के रूप में लिया था। महज एक साल पहले ही तमिलनाडु में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ प्रधानमंत्री मोदी की चर्चित मुलाकात का हवाला देते हुए विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की थी। उनकी मंशा चीन के साथ सीधा युद्ध करने के लिए सरकार को उकसाना रहा। बेशक 1962 जैसी स्थिति नहीं रही। तब से लेकर भारत ने सैनिक और आर्थिक मोर्चे पर लंबा सफर तय कर लिया है। वहीं चीन इस अवधि में दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। आर्थिक मोर्चे के लिहाज से देखें तो भारत पांचवें नंबर पर है और सैनिक ताकत के लिहाज से देखें तो चौथे नंबर है। चीन दुनिया के तीसरे नंबर की सैन्य शक्ति है। ऐसे में सीधी सैनिक कार्रवाई की अपनी सीमाएं थीं। इसलिए विपक्षी दलों के तमाम उलाहनों और उकसावों के बावजूद मोदी सरकार ने कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर चीन को घेरना शुरू किया। इसका मतलब यह नहीं कि सीमा पर सैन्य चौकसी कम की गई या सेना को कार्रवाई की छूट नहीं दी गई । गलवान के बाद जब भी जरूरत पड़ी, आधुनिक हथियार विहीन हमारे सैनिकों ने लाल सेना को आगे बढ़ने नहीं दिया। गलवान कांड के बाद भारत ने चीन के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए। उसमें सबसे पहला कदम यह रहा कि चीन के लिए सीधी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गलवान कांड के बाद से ही पड़ोसी होने के बावजूद दोनों देशों के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं है। इस बीच चीन को आर्थिक मंदी का भी सामना करना पड़ा है। चीन को लगता है कि अगर भारत के साथ उसके कारोबारी रिश्ते बढ़ेंगे, तभी वह आर्थिक मोर्चे पर आगे रह सकता है। इसके लिए सीधी उड़ानें एक बड़ा जरिया हो सकती हैं। इसलिए सीमा पर विवाद के बावजूद वह भारत पर गाहे-बगाहे सीधी उड़ान सेवा बहाल करने के लिए कहता रहा है। वह यात्रियों के लिए सीधी उड़ान के साथ ही उनकी संख्या बढ़ाने पर भी जोर देता रहा है। लेकिन भारत ने इसकी लगातार उपेक्षा की। भारत ने एक और कड़ा कदम उठाया। चीन के लिए सख्त वीजा नियम लागू कर दिए। चीनी नागरिकों के लिए सख्त वीजा नियम होने की वजह से चीन के विशेष इंजीनियरों और तकनीशियनों की भारत में आवाजाही पर एक तरह से पाबंदी ही लग गई। इसकी वजह से चीनी आर्थिक गतिविधियों में कमी आई। इसके साथ ही भारत ने चीनी कंपनियों के निवेश पर भी कठोर नियम लागू कर दिए। गलवान कांड के तुरंत बाद भारत सरकार ने पड़ोसी देशों की कंपनियों के भारतीय निवेश की जांच प्रक्रिया में पुनरीक्षण और सुरक्षा मंजूरी की एक अतिरिक्त शर्त जोड़ दी। एक तरह से पड़ोसी देशों की कंपनियों के लिए नियम सख्त कर दिए गए। इसका सबसे ज्यादा असर चीनी कंपनियों पर पड़ा। इसकी वजह से भारतीय बाजार में चीनी कंपनियों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहण और निवेश पर लगाम लग गई। इसकी वजह से गलवान कांड के बाद से ही चीनी कंपनियों द्वारा प्रस्तावित अरबों डालर के निवेश की प्रक्रिया अटक गई। जिसका सीधा असर चीन की कंपनियों पर पड़ा और उन्हें आर्थिक दिक्कतें झेलनी पड़ीं। गलवान कांड के बाद भारत ने जो बड़ा कदम उठाया था, उसकी बड़ी चर्चा हुई थी। चीन की मोबाइल कंपनियों और एप्स की भारत में गलवान कांड के बाद बड़ी पहुंच बन गई थी। गलवान कांड के तुरंत बाद भारत ने डाटा और गोपनीयता की शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए चीन करीब 300 चीनी मोबाइल एप्स पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद साल 2023 में मोदी सरकार ने चीन की स्मार्टफोन कंपनी विवो कम्युनिकेशन टेक्नॉलॉजी पर वीजा नियमों का उल्लंघन करने और 13 अरब डॉलर की धनराशि की हेराफेरी का आरोप लगाया था। जिसकी वजह से विवो के भारतीय बाजार पर बड़ा असर पड़ा। इसके साथ ही सरकार ने चीन की दूसरी बड़ी मोबाइल उत्पादक कंपनी शाओमी के खिलाफ कार्रवाई की। शाओमी पर आरोप लगा कि उसने विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून का उल्लंघन किया है। जांच में यह सही पाया गया और सरकार ने कार्रवाई करते हुए उसकी भारत स्थित करीब 60 करोड़ डॉलर से अधिक की संपत्तियों को जब्त कर लिया। इससे चीन के मोबाइल कारोबार को भारत में बड़ा झटका लगा। वैसे चीन को यहां तक लाने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत की बड़ी भूमिका रही है। चीनी विदेश मंत्री चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य हैं। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के मुताबिक, वांग यी का मानना है कि संघर्षशील दुनिया के बीच दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को अपनी स्वतंत्रता पर मजबूती से खड़ा रहना, लेकिन दोनों के बीच एकता और सहयोग भी होना चाहिए। वांग यी ने ही चीन को यह सुझाव दिया कि दोनों पड़ोसी देशों को एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच करीब तीन चौथाई समस्याओं को खत्म कराने में रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन का भी योगदान है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस, चीन काफी करीब आया है। हालांकि उसने एक बात जरूर की है कि उसने भारत-चीन के रिश्तों में आई खटास के मद्देनजर कभी-भी चीनका साथ नहीं दिया, बल्कि भारत से अपनी पुरानी दोस्ती को बनाए रखा।