गुवाहाटी। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने असम समझौते में निर्धारित कट-ऑफ तिथि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी और दुख का मिश्रण व्यक्त किया । बसुंधरा 3.0 कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं को संबोधित करते हुए शर्मा ने असमिया लोगों के सामने मौजूद चुनौतियों को स्वीकार किया और भविष्य के संघर्षो से निपटने में दृढ़ता की आवश्यकता पर बल दिया। न्यायालय के निर्णय के महत्व पर विचार करते हुए शर्मा ने कहा कि मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि इस निर्णय को ऐतिहासिक माना जाना चाहिए या नहीं । सरकार ने असम समझौते के प्रावधानों का पालन किया है, तथा न्यायालय में उसका रुख यह रहा है कि कट-ऑफ तिथि 1971 ही रहनी चाहिए। हालांकि, असम के भीतर एक महत्वपूर्ण वर्ग ऐसा भी है जो यह उम्मीद करता है कि 1951 को उपयुक्त मानक माना जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से राज्य भर में विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, क्योंकि असम समझौते के तहत नागरिकता निर्धारित करने के लिए कट-ऑफ वर्ष पर अलग-अलग राय लंबे समय से विवाद का विषय रही है । सर्वोच्च न्यायालय ने 17 अक्तूबर को नागरिकता अधिनियम की धारा 6 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था। मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं लिखते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम में प्रवासियों के आने की दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है, क्योंकि यहां भूमि का आकार छोटा है और विदेशियों की पहचान एक जटिल प्रक्रिया है ।